पृष्ठ:गोरा.pdf/३६३

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Led योराने जेलसे छूटकर देखा कि परेश बाबू और विनय फाटककै बाहर उसकी प्रतीक्षामें खड़े हैं। परेश बाबूको शान्ति और लेहसे भरा स्वाभाविक शान्त मुँह देख- कर उसने जैसी प्रसन्नता और मक्किसे उनके चरणोंकी धूल सिरमें लगाई वैसी भक्ति या प्रसन्नता इसके पूर्व उसने कभी नहीं दिखाई थी। परेश बाबू ने गोराको बड़े प्यारसे गले लगाया। गोरा हँसकर विनय का हाथ पकड़ कर कहा-विनय, स्कूलसे प्रारम्भ कर कालेज तक हम तुम दोनोंने एक साथ शिक्षा प्रासकी, सदा एक साथ रहे । किन्तु इस विद्यालय में मैं तुम्हें छोड़कर अकेला चला आया। विनय न तो इसपर हँस ही सका और न कोई बात ही बोल सका। गोरा ने पूछा-माँ कैसी हैं ! विनय-अच्छी तरह हैं। परेश बाबूने कहा-यायो ! तुम्हारे लिये देरसे गाड़ी खड़ी है। तीनों गाड़ी में सवार होकर पहुँचे फिर स्टीमरके द्वारा चल करके दूसरे दिन सबेरे सबके सब कलकत्ते पहुँचे । गोरा के कई महीनों में घर आनेकी बात सुन पहले ही से उसके घरके फाटक पर दर्शकोंकी वासी भीड़ जम गई थी ! किसी करह उन लोगोंके हाथ से छुटकारा पाकर गोरा मीतर आनन्दमयीके पास पहुंचा । अानन्दमयी आज खूब सबेरे स्नाना- दिक कर्म करके उससे मिलने के लिये प्रस्तुत हो बैठी थी। गोराने उनके पैरोंमें गिरकर प्रणाम किया अानन्दमयीके आँखोंसे भासू बहने लगे । इतने दिन जिन आँसुओंको वह रोके हुए थी उन्हें आज किसी तरह न रोक सकी। ३६३