पृष्ठ:गोरा.pdf/३६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
३६६ ]
गोरा

३६६ गोरा विनय-इसी तरहके सोच विचार से मनुष्य सामाजिक अन्याय को चिरस्थायी कर डालता है। साहब की लात खाकर जो किरानी कई दिनों तक अपमान सहन करता है उसे तुम दोष क्यों देते हो ? वह भी तो अपनी सन्तान की बात सोचकर ही वैसा करता है! गोरा-मैं तुम्हारे साथ वितण्डावाद करना नहीं चाहता । इसमें तर्क की बात कुछ नहीं है । इसमें केवल हृदय के द्वारा एक समझने की बात है । ब्राह्म-वालिका के साथ व्याह करके तुम देश के सर्व साधारण लोगोंसे अपने को अलग करना चाहते हो, यही मेरे लिए अत्यन्त खेद का विषय है । तुम यह काम कर सकते हो, पर मुझसे वो ऐसा काम कभी नहीं हो सकता । इसी जगह मुझमें और तुम में प्रभेद है। समझ-बूझमें अन्तर नहीं है। मेरा प्रेम जहाँ है, वहाँ तुम्हारा नहीं ! तुम जहाँ छूरी चलाकर अपने को मुक्त करना चाहते हो वहाँ तुम्हारा कुछमी मोह नहीं, परन्तु मरे ता वहाँ होठों प्राण आते हैं। मैं अपने भारतवर्ष को चाहता हूँ। तुम चाहे उसे जितना दोष दो । जितनी गालियाँ दो, मैं उसी को चाहता हूं। उससे बढ़कर मैं अपने को या और किसी मनुष्य को नहीं चाहता। मैं ऐसा कोई काम करना नहीं चाहता हूं जिससे भारतवर्षके साथ मेरा रत्ती भी किछद हो। बिनय कुछ उत्तर देना ही चाहता था कि इतने में गोरा ने कहा- नहीं तुम वृथा मेरे साथ विवाद करते हो। यही दुनिया जिस भारतको त्याग रही है, जिसका अपमान कर रही है, उसी के साथ मैं अपमान के शासन पर बैठना चाहता हूँ। यह जातिभेद का भारतवर्ष, यह कुसंस्कार भरा मासवर्ष, यह मूर्ति पूजक भारतवर्ष मेरा है और मैं इसका हूं। तुम यदि इससे अलग होना चाहते हो तो मुझसे भी अलग होगे। यह कह कर गोरा कमरे से निकलकर छतके ऊपर घूमने लगा। विनय चुपचाप बैठा रहा । नौकरने आकर गोरासे कहा कि आपको माँ जी बुला रही है। गोरा जब आनन्दमयी के पास गया, तब उसके मुंह पर प्रसन्नता