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गोरा

३७०1 गोरा पाई है बेरी उसी दिनसे वराबर तुम्हारे गुणा गाकर भी इसका जी नहीं भरता। विनय-सुन रक्खो दीदी, मैं गुणाही हूं, अकृतश नहीं हूँ, इसकी शहादत और सबूत सब सामने हाजिर है। सुचरिता- इससे तो वह केवल अपने गुण का परिचय दे रहे हैं। विनय-किन्तु मेरे गुण का परिचय मेरे निकट आप कुछ नहीं पावेंगी। अगर मेरे गुण का परिचय प्राप्त करना चाहें, तो माँ के पास आइयेगा-अाश्चर्य से अवाक् हो जाइयेगा-उनके मुखसे जब अपने गुण सुनता हूँ तो मैं खुद ही आश्चर्यचकित हो जाता हूँ ! माँ अगर मेरा जीवनचरित्र लिखें, तो मैं अभी मरने को तैयार हूँ। श्रानन्द-सुनती हो लड़के की बाते । गोरा-विनय तुम्हारे माँ-बाप ने तुम्हारा नाम सार्थक ही रक्खा था। विनय-जान पड़ता है, उन्होने मुझसे और किसी गुण की प्रत्याशा नहीं की थी, इसीसे वे मेरे विनय गुण की ही दुहाई दे गये हैं। नहीं तो उन्हें हास्यास्पद होना पड़ता। इसी तरह प्रथम पालाप का सङ्कोच दूर हो गया। विदा होते समय सुचरिता ने विनय से कहा-आप जरा एक बार हमारे उधर न भाइयेगा।