पृष्ठ:गोरा.pdf/३७१

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[ ५५ ] विनय ने यह समझ लिया था कि ललिता के साथ उसके विवाहके प्रसंगकी आलोचना करने के लिये ही सुचरिता उसको बुला गई है। इस प्रस्ताव को उसके तय कर देनेसे ही तो मामला ख़तम नहीं हो गया । विनय सुचरिताके पर जब पहूँचा। हरिमोहिनी उस समय रसोई बनानेका उद्योग कर रही थी। विनय वहाँ रसोईके द्वार पर ब्राह्मण संतान के मध्यान्ह भोजन का दावा मन्जूर करा कर ऊपर चला गया । सुचरिता कुछ सिलाईका काम कर रही थी। उसने उसी पर नजर रख कर अंगुली-चालन करते करते कहा-देखिये विनय वान जहाँ भीतर की बाधा नहीं है, वहाँ क्या बाहरकी प्रतिकुलताको मान कर चलना होगा ? गोराके साथ जिस समय वहस हुई थी, उस समय विनवने उसके विरुद्ध मुक्तियों का प्रयोग किया था। किन्तु जब सुचरिता के साथ उसी विषय की आलोचना होने लगी, तब उसने उससे उलटे पद की युनियोंका प्रयोग किया ! ऐसी दशा में यह कौन ख्याल कर सकेगा कि गोरा के साथ उसका कुछ भी मन विरोध है। विनयने कहा-दीदी, बाहर की बाधाको तुम लोग भी तुन्छ नहीं मानते। सुचरिता-उसका कारण है विनय बाबू ! हमारी बाधा ठीक बाहरकी बाधा नहीं है । हम लोगोंका समाज धर्म विश्वके ऊपर ही प्रतिष्ठित है। किन्तु आप जिस समाज में हैं, उसमें आपका बन्धन केवल सामाजिक बन्धन मात्र है इसी कारण यदि ललिताको ब्राम-समाज छोड़कर जाना हो, तो उसमें जितनी भारी क्षति है, आपके सम्मुख आपको उननी क्षति नहीं हो सकती। इसी समय शतीश एक अंगरेजीका अखबार लेकर वहां उपस्थित हुवा । सुचरिता अखबारको लेकर पढ़ने लगी। ३७१