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गोरा

३७२ ] गोरा उस ब्राह्म समाजी अखबारमें एक खबर यह थी किसी प्रसिद्ध ब्राम परिवार में हिन्दू समाजके युवकके साथ ब्याह होनेकी जो आशंका उत्पन्न हुई थी, वह हिन्दू युवककी असम्मति होने के कारण दूर हो गई है। इसी उपलक्षको लेकर उक्त हिन्दू-युवककी निष्टाके साथ तुलना करके उस ब्राह्म परिवारकी शोचनीय दुर्वलताके सम्बन्धमें खेद भी प्रकट किया गया था । सुचरिताने अपने मनमें कहा, चाहे जिस तरह हो, विनयके साथ ललिताका व्याह कराना ही होगा। किन्तु वह तो इस युवकके साथ बहस करके न होगा । सुचरिताने अपने यहां आने के लिये ललिताको एक चिट्ठी लिख दी। उसमें यह नहीं लिखा कि विनय यहाँ मौजूद है। हरिमोहिनीने कमरे में प्रवेश करके पूछा-विनय इस समय कुछ जल- पान करेगा या नहीं। बिनयने उत्तरमें कहा-~~ना। तब हरिमोहिनी कमरे के भीतर आकर बैट गई। हरिमोहिनी जितने दिन परेशवाबूके धर थी,उतने दिन विनयके ऊपर उनका खूब आकर्षण था। किन्तु जबसे सुचरिता को लेकर वह जुदे घरमें रह कर अलग अपनी गिरस्ती बाँध बैठी है, तबसे इन सब लोगों का आना-जाना उनके लिए अत्यन्त रुचिकर हो उठा है। आजकल आचार-विचारमें सुचरिता जो उन्हें सम्पूर्ण मान कर नहीं चलती, उसका कारण उन्होंने इन सब लोगोंके सङ्ग-दोषको ही ठीक कर लिया है । यद्यपि वह जानती है कि विनय ब्राह्य समाजी नहीं है, तो भी उन्हें इसका स्पष्ट अनुभव हो रहा है कि विनयके मनमें कोई हिन्दू-संस्कारकी दृढ़ता भी नहीं है। इसीसे अब वह पहलेकी तरह उत्साहके साथ इस ब्राह्मण बालक को बुलाले जाकर टाकुर जी के प्रसाद का अपव्यय नहीं करती थी। आज बातचीतके सिलसिले में हरिमोहिनी विनयसे पूछ बैठी- अच्छा मैया, तुम तो ब्राह्मणके लड़के हो; फिर क्यों संध्या पूजा कुछ भी नहीं करते? विनय-मौसी, दिन रात पाठ रटनेके फेरमें पड़ कर गायत्री-संध्या