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गोरा

३७४ ] गोरा सुचरिताको घेर कर बिल्कुल अपने धेरेमें रखना चाहती है वैसा किसी तरह कर नहीं पाती । इसीसे कभी सुचरिताके साथियों पर और कभी उसकी शिक्षा पर दोषारोपण करती है। ललिता और विनयको लेकर अथवा ताक पर बैठे रहना हरिमोहिनीके लिये सुन्ख कर हो, यह बात नहीं; तथापि उन दोनों पर चिढ़ होनेके कारण ही बह यहाँ पर उस समय बैठी रही। उन्होंने समझ लिया था कि विनय और ललिताके बीच एक रहत्वपूर्ण सम्बन्ध है । इसीसे उन्होंने मन ही मन कहा-तुम्हारे समाजमें चाहे जो रीति हो, मैं अपने इस घरमें यह सब निलज्जताके साथ मिलना जुलना, न होने दूंगी। उधर ललिताके मन में भी एक विरोधका भाव उठा हुआ था । कल सुचरिताकै साथ आनन्दमयी के घर जानेका उसने भी इरादा किया था; किन्तु जाने के समय किसी कारणवश वह जा नहीं सकी। गोराके ऊपर लालता की भारी श्रद्धा है, किन्तु विरोधका भाव भी अत्यन्त तीब है । इस खयाल को वह किसी तरह अपने मनसे भगा नहीं पातीं थी कि गोरा सभी तरह उसके प्रतिकूल है । यहाँ तक कि जिस दिन गोरा जेलखानेसे छूटा है उसी दिन से विनय की ओर भी उसके मनके भाव में एक परिवर्तन हो गया है । कई दिन पहले भी इस बात को खूब स्पर्धा के साथ ही उसने मन में स्थान दिया था कि विनय के ऊपर उसका एक जोर और दखल है। किन्तु अब यह कल्पना करते ही वह विनय के विरुद्ध कमर वाँधकर खड़ी हो गई कि गोरा के प्रभाव को विनय किसी तरह अपने ऊपर से हृया नहीं सकेगा। ललिता को कमरे में प्रवेश करते देखते ही विनय के मन में एक आन्दोलन प्रबल हो उठा । ललिता के सम्बन्धमें विनय किसी तरह अपने सहज भाव की रक्षा नहीं कर सकता ? जब से उन दोनों के विवाह की सम्भावना का समाचार वा अफवाह समाज में फैल गई है, तबसे ललिता को देख पाते ही विनय का मन, बिजली से चचंल चुम्बक-शलाका की तरह, स्पन्दित होता रहता है।