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गोरा

३८० ] गोरा वहाँसे जानेको उद्यत हुई । विनयने समझा था, परेश बाबू अभी वरदा- सुन्दरीको बुलाकर उसके मत परिवर्तनकी नई खबर उन्हें जतायेंगे । किन्तु उन्होंने कुछ भी स्त्रीसे नहीं कहा । वास्तवमें परेश वाबूकी अब भी यही धारणा थी कि अभी किसी से यह समाचार कहने का समय ही नहीं अाया। उनकी इच्छा थी कि यह बात अभी-सभीसे छिपी रहे, किन्तु बरदासुन्दरी जब विनयके प्रति सुस्पष्ट अवज्ञा और क्रोध प्रकट कर चले जाने को उद्यत हुई, तब किसी तरह विनयसे चुप नहीं रहा गया । उसने ममनोन्मुख वरदामुन्दरीके पैरोंके पास सिर नवाकर प्रणाम किया, और कहा --मैं अाज अापके पास ब्राह्म समाजमें दीक्षा लेनेका प्रस्ताव लेकर आया हूँ। मैं अयोग्य हूँ, किन्तु आप लोग मुझे योग्य बना लेंगे यही मुझे भरोसा है। सुनकर विस्मित वरदासुन्दरी घूम कर खड़ी हो गई, और धीरे- धीरे भीतर आकर बैठ गई। उन्होंने जिज्ञासाकी दृष्टिसे परेश बाब के मुखकी ओर देखा। परेशने कहा-विनय बाय दीक्षा लेनेके लिए अनुरोध करते हैं। सुनकर बरदासुन्दरीके मनमें एक जय लाभ का गर्व अवश्य उपस्थित हुना, किन्तु सम्पूर्ण अानन्द नहीं हुआ ! यह क्यों ? इसका कारण यही है कि उनके मन में भीतर ही भीतर वड़ी इच्छा थी कि अव की दफे परेश बाबू को यथेष्ट शिक्षा मिल जाय -- अपनी लापरवाही की सजा पाकर उनकी आँखें आइन्दा के लिए खुल जायँ। उनके स्वामी को भारी और बहुत पश्चाताप करना होगा, इस भविष्यवाणी की घोषणा को वह खूब जोर के साथ बारम्बार कर चुकी थी। और, इसी कारण सामाजिक आन्दोलन से परेश बाबू को यथेष्ट विचलित न होते देख कर वरदासुन्दरी मन ही मन अत्यन्त असहिष्णु हो उठ रही थी। इसी बीच में सारे संकट की ऐसे अच्छे ढंग से एक मीमांसा हो जाना वरदासुन्दरी को विशुद्ध प्रसन्नता नहीं पहुंचा सका। उन्होंने मुख का भाव गम्भीर बना कर कहा- यह पा