पृष्ठ:गोरा.pdf/३८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
३८२ ]
गोरा

१८२] गोरा है --खास कर इस कारण और भी कि मामला साथ उसके सम्बन्धमें इतनी अलोचना हो गई है। कौन मुँह लेकर किस भाषामें वह प्रार्थनाका पत्र लिखेगा ! वह चिट्टी जब ब्राह्म पत्रिकामें प्रकाशित होगी, तब वह किस तरह चार आदमियोंमें सिर उठा सकेगा ? वह चिट्ठी गोरा पढ़ेगा, आनन्दमयी पढ़ेगी । उस चिट्ठीके साथ और कोई इतिहास तो रहेगा ही नहीं उसमें केवल इतनी ही बात जाहिर होगी कि विनयका चित्त एकाएक ब्राह्म धर्मकी दीक्षा लेने के लिये उद्यत हो उठा है लेकिन बात तो उतनी ही सच नहीं है, उसे और भी कुछ शामिल करके न देखनेसे विनयके लिए लज्जा ढकनेका तनिक भी आवरण नहीं रहता ! विनयको चुप होते देखकर वरदासुन्दरीको भय हुआ । उन्होंने कहा --यह तो ब्राह्म समाजके किसी कार्यकर्ताको जानते पहचानते नहीं हैं- हम लोग ही सब बन्दोबस्त कर देंगे। आज अभी हारान बाबूको बुलाये भेजती हूँ । अब तो और समय नहीं हैं ~ परसों ही तो रविवार है ! इसी समय देखा गया, सुधीर बैठकखानेके सामनेसे ऊपर जा रहा है। बरदासुन्दरीने उसे बुलाकर कहा-~~-सुधीर, विनय बाबू परसों हमारे समाजमें दीक्षा लेंगे। सुधीर अत्यन्त प्रसन्न हो उठा । सुधीर मन-ही-मन विनयका एक विशेष भक्त था। विनयके ब्राह्म-समाजमें अपने दलमें पानेकी खबरसे उसे भारी उत्साह हुआ ! विनय जैसी बढ़िया अँगरेजी लिख सकता है, उस की जैसी विद्या बुद्धि है, उसके देखते उसका ब्राझ-समाजमें शामिल न होना ही उसके लिए अत्यन्त असंगत सुधीरको जान पड़ता था। विनय जैसा आदमी किसी तरह ब्राह्म-समाजके बाहर नहीं रह सकता, इसीका प्रमाण पाकर सुधीर की छाती गर्व और आनन्द से फूल उठी। उसने सहा परसों रविवार तक ही क्या इसकी तैयारी हो सकेगी ? बहुतोंको खबर ली नहीं पहुंच सकेगी। सुधौरकी यही इच्छा है कि विनयकी दीक्षाको एक दृष्टान्त या आदर्श की तरह सर्व साधारणके सामने उपस्थित किया जाय।