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गोरा

गोरा [ ३८३ वरदासुन्दरीने कहा-ना, ना, इसी रविवारको हो जायगी। सुधीर तुम दौड़ जाओ, हारान बाबू को जल्द बुला लायो । जिस अभागेके दृष्टान्त द्वारा सुधीर ब्राझ-समाजको अजेयशक्ति वाला सर्वत्र घोषित करनेकी कल्पनासे उत्तेजित हो उट रहा था; उसका चित्त उस समय संकुचित होकर एकदम बँद सा बना जा रहा था ! जो काम मनके भीतर केवल तर्क और युक्तिसे विशेष कुछ भी नहीं था उसीका बाहरी चेहरा देखकर व्याकुल हो उठा। हारान बाबूकी पुकार पड़ते ही विनय उट खड़ा हुआ । वरदासुन्दरीने कहा-जरा बैठ जाओ, हारान बाबू अभी आते हैं ज्यादा देर न होगी। विनय-ना, मुझे माफ कीजियेगा। वह इस समय इस घिरावसे दूर हट जाकर खुलेमें सब बातों पर अच्छी तरह गौर करने का मौका पावे तो उसकी जान बचे। विनयके उठते ही परेश बाबूने उठकर उसके कंधे पर एक हाथ रख कर कहा--बिनय, चटपट कुछ न करो-शांत होकर, स्थिर होकर सब बातें सोचकर देखो । अपने मन को पूर्ण रूप से अच्छी तरह समझे बिना जीवन के इतने बड़े एक काम में प्रवृति होना ठीक नहीं।