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गोरा

गोग [३८५ , मुझको कहनी पड़ेगी । उस दीक्षाको कलुषित करना होगा! सुन्त्र, नुविधा था प्रेमशक्ति के खिंचावसे हम ब्राहा-समाजमें असत्यको धुसने दें, काटको सादर अाह्वान करें ! क्यों, ललिता ! तुम्हारे जीवनके साथ ब्राह्म समाज की इस दुर्गतिका इतिहास क्या सदाके लिए मिश्रित न हो रहेगा ? ललिता इस पर भी कुछ न बोली, और वहां से चली गई। वरदानुन्दरीको भी हारान बाबूकी बात अच्छी न लगी। अब वह किसी तरह विनयको छोड़ना न चाहती थी। उसने हारानबाबूसे अनेक व्यर्थ अनुनय-विनय करके, आस्त्रिर रुष्ट होकर, उसे विदा कर दिया । वह इस कारप-बड़ी कटिनाईमें बड़ी कि उसने न तो परेश बाबुको अपने पक्षमें कर पाया और न हारानबाबूको ही ! जब तक दीक्षा लेने की बातको विनय मामूली तौरसे देख रहा था तब तक बड़ी दृढ़ताके साथ अपने संकल्पको प्रकाशित कर रहा था ! किन्तु जव उसने देखाकि इसके लिये उसे ब्राझ-समाजमें निवेदन करना होगा और इस विषय पर हारान वाबूके साथ परामर्श करना पड़ेगा तब वह एकाएक घबरा गया । मैं कहाँ जाकर किससे सलाह लें, यह उसकी सनम में न आया । यहाँ तक कि यानन्दमयीके पास जाना भी उसके लिये कठिन हो गया। सड़क पर जाकर टहलने की शक्ति भी उसमें न रही । इसी से वह अपने ऊपर वाले सूने कमरे में जाकर तख्त पर लेट रहा ! साँझ होने में अब विलम्ब नहीं है । अँघरे घरमें चिराग वत्ती करनेके लिए नौकर को आते विनय मना करना ही चाहता था कि इतने में केसीने विनयको नीचे से पुकारा । उसने देखा, आँगनमें जीने के सामने ही शतीशके साथ वरदासुन्दरी बड़ी हैं। फिर वहीं वात बही विचार । विनय बड़ी घबराहटके साथ सतीश और वरदासुन्दरी को ऊपरके कमरे में ले गये। वरदासुन्दरीने सतीशसे कहा-बेटा सतीश तू कुछ देरके लिए बरा. प्रदेमें जाकर बैठ । मा० नं० २५