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गोरा

गोरा [ ३८ किस बुद्धिसे हाकिमने तुमको जेल दिया मैं यही सोच रही हूँ। गोराने हँसकर कहा--अगर आप मजिस्ट्रेट होती तो जेलखानेमें चूहे छछून्दरका डेरा होता। हरिमोहिनीने कहा-नहीं वाबू, संसारमें चोर डाकुओंकी क्या कमी है जो उनके बदले साधुओंको जेलका कष्ट भोगना पड़े। क्या मजिस्ट्रेटके आँखें न थी ? तुम चोर न डाकू फिर उसने तुम्हें कैदकी सजा क्यों दी ? तुम तो भगवान के हरे भक हो; सच्चे देश हितैषी हो; यह तुम्हारा चेहरा देखने ही से मालूम है। गराने कहा- मनुष्यके मुँह को देखने से पीछे भगवान के रूप का स्मरण न श्रावे, इसीसे मजिस्ट्रेट केवल कानूनकी तावक्री और देखकर काम करता है किसी मनुष्य का मुंह देखकर काम नहीं करता । हरिमोहिनी -जब छुट्टी मिलती है तब मैं राधारानीसे तुम्हारी रचनावली पड़वा कर नुनती हूं। कब तुम्हारे मुँहसे अच्छी-अच्छी बाते सुनूं मैं इसी प्रत्याशामें इतने दिन से थी। मैं मूर्ख स्त्री और जन्म की दुखिनी हूँ न हित की सब बातें मेरी समझमें आती हैं और न समझ कर उन पर ध्यान ही देती हूं। किन्तु अब तुमसे कुछ शानकी शिक्षा पाऊँगी। गोराने नम्रतासे सिर झुका लिया । इस बातका कुछ उत्तर नहीं दिया। हरिमोहिनीने कहा-अाज तुमको कुछ खाकर जाना होगा । तुम्हारे सहरा विशुद्ध ब्राह्मण कुमारको मैंने बहुत दिनोंसे नहीं खिलाया । आज जो कुछ मौजूद है उसीसे मुंह मीठा कर लो। किसी दिन तुमको मेरे घर अच्छी तरह भोजन करना होगा । मैं आज से ही नेवता दे रखती हूँ। यह कहकर जब हरिमोहिनी गोराके लिए जल-पानकी ब्यवस्था करने गई तव सुचरिता की छाती धड़कने लगी। गोरा झट पूछ बैठा-अाज विनय आपके यहां आया था ? सुचरिता दवी जबान से बोली- जी हां । गोरा-उसके बादसे विनयके साथ मेरी भेट नहीं हुई है, किन्तु वह क्यों आया था यह मैं जानता हूँ। । -:-