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गोरा

गोरा [ ३६ स्थापना कर गये हैं। उसकी तह तक पहुँचना, उसे पूर्णरूपसे जानना हर एकका काम नहीं है। मेरी समझ में बिना समझे धर्मको लेकर आंदोलन न करना ही अच्छा है । तुम अभी लड़के हो, अब तक अंगरेजी ही पढ़ते रहे हो तुम जो ब्रह्मसमाजकी तरफ झुके थे सो तुमने ठीक अपने अधिकार के माफिक ही काम किया था। इसी कारण उसके लिए मैं तुम पर नाराज नहीं हुआ था, बल्कि खुश ही हुआ था। किन्तु इस समय तुम जिस राह पर चले हो, वह मुझे तुम्हारे लिए ठीक नहीं है ।" गोराने कहा-आप कहते क्या हैं बाबू जी ? मैं हिन्दू हूँ। हिन्दू धर्मके मर्मको अाज न समझूगा तो कल समझूगा! और, अगर कभी न समझू तो भी चलना तो इसी राहसे होगा। हिन्दू समाजके साथ पूर्व जन्मके सम्बन्धको तोड़ नहीं सका, इसीसे तो इस जन्ममें ब्राह्मणके घर पैदा हुअा हूँ। इसी तरह से.अनेक जन्ममें हिन्दू धर्म और हिन्दू समाजके भीतर होकर अन्तको इसकी चरम सीमामें उत्तीर्ण होऊँगा । . कृष्णदयालने केवल सिर हिलाते हुए कहा—लेकिन भैया, हिन्दू कह देनेस ही हिन्दू नहीं हुआ जा सकता। मुसलमान होना सहज है, क्रिस्तान हर कोई हो सकता है लेकिन हिन्दू ! बस भैया! यह बड़ी कठिन बात है ! गोरा-सो तो ठीक है, किन्तु मैं जब हिन्दू होकर हिन्दूकेवर पैदा हुश्रा हूँ तब तो फाटक पार हो पाया हूँ अब ठीक तौर पर साधना करता रहूँगा तो थोड़ा आगे बढ़ सकूँगा। कृष्णदयाल—भैया बहसके द्वारा मैं तुमको ठीक ठीक नहीं समझा सकूँगा | मगर हाँ, तुम जो कहते हो वह भी सत्य है । जिसका जो कर्मफल है, निर्दिष्ट धर्म है उसे एक दिन घूम फिर कर उसी धर्मके मार्ग में ही आना होगा-कोई रोक नहीं सकेगा। भगवान् की इच्छा ! हम क्या कर सकते हैं, हम तो केवल उपलक्ष्य मात्र है । फर्मफल और भगवान् की इच्छा, सोऽहवाद और भक्ति तत्व सभी कुछ कृष्णदयाल बाबू समान भावो नहा करते हैं । इसका अनुभव भी नहीं करते कि इनमें परस्पर किसी प्रकारके समन्वय या सामंजस्यका प्रयोजन है।