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गोरा

३६० ] गोरा गोरा यह कहकर चुप हो रहा सुचरिता भी चुप हो रहीं । कुछ देरके बाद गोरा ने कहा-आप लोग जो ब्राह्म-मत के अनुसार विनय का व्याह कर देना चाहती हैं यह क्या उचित है ? इस बातकी ठेस लगनेसे सुचरिताके मनसे सोचका माव एकदम दूर हो गया। उसने गोराके मुँहकी ओर देखकर कहा - क्या आप मुझसे यही कहलाना चाहते हैं कि ब्राह्म मतसे विवाह होना अच्छा नहीं है ? गोरा मैं आपसे केवल यही नहीं कहलाना चाहता; मैं तो आपसे वहुत कुछ कहलाने की आशा रखता हूँ : आप किसी एक दलको व्यक्ति नहीं हैं, यह आपको अपने मन में विचारना चाहिए और पांच आदमियों की बातमें पड़कर आप अपने तई हीन न समझे। सुचरिता सावधान होकर बोली--क्या आप किसी दल में नहीं हैं। गोरा- नहीं, मैं तो हिन्दू हूं। हिन्दू कोई दल नहीं, कोई सम्प्रदाय नहीं । हिन्दू एक जाति है। यह जाति इतनी बड़ी है कि कोई इस जाति के जातित्वको किसी संज्ञाके द्वारा सीमा बद्ध करे, यह नहीं हो सकता। सुचरिता-यदि हिन्दू कोई सम्प्रदाय नहीं तो वह साम्प्रदायिक झमेलेमें क्यों पड़ता है ? गोरा--मनुष्यको कोई मारने जाता है तो वह अपनेको क्यों बचाना चाहता है ? वह सजीव है, उसके प्राण हैं, इसीलिए न ? पत्थर ही एक ऐसा निर्जीव पदार्थ है जो सब प्रकारके अाघातोंको चुपचाप सह लिया करता है। सुचरिताने कहा-जिसे मैं धर्म समझती हूं उसे यदि हिन्दू . प्राघात समझे तो ऐसी दशामें आप मुझे क्या करनेकी सलाह देंगे ? --तब मैं अापको बही सलाह दूंगा कि जिसको आपने कर्तव्य समझ लिया है वह यदि हिन्दू जातिको इतनी बड़ी सत्ताके लिए हानि- कारक आधात गिना जाय तो आपको खूब सोच विचार कर देखना होगा कि आपकी समझमें कोई भूल चा धर्मान्धता तो नहीं है। आपने सब ओर भली भांति सोचकर देखा है कि नहीं ? अपने दलके लोगोंके संस्कार गोरा-