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गोरा

गोरा [३६१ 1 को केवल अभ्यास या ग्रालस्य वश सत्य कहकर एक इतना बड़ा उत्पात करनेकी प्रवृत्ति होना ठीक नहीं। मुचरिता कुछ उत्तर न देकर चुपचाप गोराकी बात सुनती जा रही थी। यह देखकर गोराके मनमें दयाका संचार हो पाया वह जरा रुककर कोमल स्वरमें बोला-मेरी बातें शायद आपको सुनने में कठोर मालूम हुई हो, पर इससे आप मुझे विरुद्ध पक्षका मनुष्य समझ मनमें विद्रोहका भाव न रखें । अगर में आपको विरुद्ध पनकी समझता तो आपसे ये बातें न कहता । अापके हृदय में जो एक स्वनाविक उदार शक्ति है, वह समाजके भीतर रहकर संकुचित हो रही है, इसीका मुझे बड़ा खेद है । सुचरिताका मुँह लाल हो गया। उसने कहा नहीं, नहीं, आए मेरे लिए कुछ सोच न करें। आपको जो कहना हो, कहिए । गोराने कहा--मुझे अब और कुछ कहना नहीं है। आप भारतवर्ष को अपनी सरल बुद्धि और सरल हृदय के द्वारा देखे । इसे आप प्यार करें ! भारतवर्ष के लोगों को यदि आप अब्राझ की दृष्टि से देखेंगी तो अवश्व उन्हें तुच्छ समझ उनका अपमान करेंगी ! तब आपको केवल उनकी भूल ही भूल सूझेगी । जहाँ से उनके सन्पूर्ण गुण-दोष देख पड़ेंगे वहाँ तक आप न पहुँच सकेंगी । ईश्वर ने इन्हें भी मनुष्य बनाया है। इनका विचार भिन्न है, मार्ग भी एक नहीं । इनका विश्वास और संस्कार भी अनेक प्रकार के हैं। किन्तु सभी का आधार एक मनुष्यत्व है सुचरिता सिर नीचा किये सुन रही थी ! उसने एक वार गोरा के मुंह की ओर देखकर कहा-आप मुझे क्या करने को कहते हैं ? गोरा-और कुछ नही कहता, मैं सिर्फ इतना ही कहता हूँ कि आपको वह वात खूब सोचकर देखनी होगी कि हिन्दू धर्म पिताकी नाति -नाना भावाँके, नाना मतों के, लोगों को अपनी गोद में लेने के लिए सदा प्रस्तुत रहता है अर्थात् एक हिन्दू धर्म ही ऐसा है जो संसार में मनुष्यों को मनुष्य सनझ अङ्गीकार करता हैसमाज को व्यक्ति जान उसे मनुष्यों से भिन्न जाति का जीव नहीं मानता।