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गोरा

हारान बाबूने कण्ठत्वर को कुछ कोमल करके कहा-इसीसे तो, प्रोफ! आपको बड़ा कट सहना पड़ा है। गोरा-जितने कट की आशा की जाती है उससे अधिक कुछ भी नहीं हुआ। हायन -विनय बाबू के सम्बन्ध में आपसे कुछ पूछना है। आपने मुना ही होगा कि उन्होंने आगामी रविवार को ब्राह्मसमाज में दीक्षा लेने का निश्चय किया है। गोरा-जी नहीं, मैंने तो नहीं सुना । हारान बवू ने पूछा- आपकी इसमें सम्मति है ? गोर-विनय तो नी सम्मति की अपेक्षा नहीं रखना। हारान बाबूचा श्राप समझते हैं कि विनय बाबू पक्के विश्वासके साथ यह दीक्षा लेने को तैयार गोरा-जब वह दीक्षा लेनेको राजी हुअा है, तब आपका यह पूछना विलकुल अनावश्यक है : हारान बाबू-जब मवृत्त प्रबल हो उठती है तब हम लोगों को यह विचार कर देखने का अवसर नहीं मिलता कि किसे मानना चाहिए और किसे नहीं । आप तो मनुष्य का स्वभाव जानते ही है। गोरा-जी नहीं, मैं मनुष्य के स्वभाव के ही विषय में व्यर्थ आलो- चना नहीं करता। हारान वा--आपके साथ मेरा या मेरे समाज का मत नहीं मिलता तो भी मैं आप पर श्रद्धा करता हूँ। मैं बखूबी जानता हूँ कि आपको अपने विश्वास से, चाहे वह सत्य हो या मिथ्या, कोई किसी प्रलोभन से हा नहीं सकता। किन्तु- गोरा ने रोक कर कहा- मुझ पर जो आपकी कुछ श्रद्धा बच रही है क्या वह इतनी मूल्यवान है कि उससे वंचित होने के कारण विनय को विशेष हानि सहनी पड़े । संसार में भली बुरी वस्तुएँ अवश्य हैं किन्तु