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गोरा

३६४] गोरा - श्राप अपनी श्रद्धा या अश्रद्धा द्वारा उनका मूल्य निरूपण करें तो भले ही करें, पर बात इतनी है कि आप संसार के लोगोंसे उसे ग्रहण करने के हेतु आग्रह न करें। हारान बाबू-अच्छा, उस बात की मीमांसा अभी न होनेसे भी काम चल जायगा । किन्तु मैं आपसे पूछता हूं कि विनय जो परेश बाबू के घर विवाह करना चाहते हैं सो क्या आप उसमें रोकटोक ट करेंगे ? गोरा ने लाल आखें करके कहा-मैं विनय के सम्बन्ध में आपके साथ क्या यह आलोचना कर सकता हूँ ? जब आप मानव स्वभाव से परिचित हैं तब आपको यह भी जानना उचित था कि विनय मेरा मित्र है, आपका नहीं। हारान बाबूइस घटना के साथ ब्राह्म समाज का सम्बन्ध है, लिए मैंने यह वात चलाई है, नहीं तो- गोरा-मैं तो ब्राह्म समाज का कोई नहीं हूं, मुझसे अापका यह कहना न कहने के बराबर है। इसी समय सुचरिता घर में आई । हासन बाबूने उससे कहा- सुचरिता, तुमसे मुझे कुछ कहना है । गोरा के सामने सुचरिताके साथ अपनी विशेष धनिष्टता प्रकट करने ही के लिए हारान बाबू ने निष्प्रयोजन यह बात कही थी । सुचरिता ने इसका कुछ उत्तर न दिया । गोरा भी अपने आसन पर अटल भाव से बैठा रहा । हारान बाबू को सुचरिता के साथ बात करने का अवकाश देने को उसने वहाँ से हट जाने की कोई चेष्टा न की । हारान बाबू ने कहा- तुचरिता उठो, उस कमरे में चलो तो तुमसे मुझे जो कहना है, वह मैं कह दूँ। सुचरिता ने इस बात को अनसुनी कर गोरा की ओर देखकर कहा- गोरा वाचू , आपके लिए जलपान का सब सामान ठीक हो गया । श्राप उस कमरे में चलएि । मौसी जलपान लेकर यहीं आती, परन्तु वे हारान