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गोरा

- गोरा [ ३९५ बाबू के सामने नहीं निकलतीं इसीलिए वे बड़ी देर से आपकी प्रतीक्षा कर रही हैं। यह आखिरी वात हारान बाबू के मन में चोट पहुँचाने ही के मतलब से सुचरिता ने कही। आज उसने बहुत सहा है, तो मी चोट के बदले चोट लगाये बिना न रह सकी। गोरा उटा । हारान बाबू घृष्ट की तरह बोले--मैं तब तक बैठता हूँ। सुचरिता-व्यर्थ क्यों बैटिएगा १ बातचीत करने का समय न रहेगा। तो भी हारान बाबू न उठे। नुचरिता और गोरा दोनों यहाँ से चले गये। गोरसको इस घर में इस प्रकार बैंठ देख और सुचरिता के व्यवहार पर लक्ष्य करके हारान बाबूका नन लोहा लेनेको तैयार हो गया । क्या सुचरिता ब्राह्म-समाजसे यो भ्रष्ट हो नीचे गिर जायगी ! उसकी रक्षा करनेवाला कोई भी नहीं है ? इसका प्रतिरोध करना ही होगा। हारान वायू दराजन्ने कागज खींच सुचरिता को पत्र लिखने बैठे हारान वाबूके ननमें कितने ही अन्य विश्वास थे ! उनमें एक यह भी था कि सत्य की दुहाई देकर जब हम किसी को फटकार बताते हैं तब हमारा ओजस्वी वाक्य विफल नहीं हो सकता । शेजन के उपरान्त हरिमोहिनी के साथ बड़ी देर तक बात करके गोरा जब अपनी छड़ी लेने के लिये सुचरिताके कमरे में गया तव भूर्यास्त हो चुका था। हारान वावू चले गये हैं । सुचरिताके नामकी लिखी एक-चिट्ठी टेबल पर खुली पड़ी है। वह इस तरह से रक्खी हुई हैं कि कमरे के भीतर प्रवेश करते ही उस पर दृष्टि पड़े। उस चिट्टीको देखते ही गोराके हृदय का भाव बदल गया । जो पहले मक्खन से भी मुलायम था वह एकाएक पत्थर से भी बढ़कर कटोर हो गया ! चिट्टी हारान बाबूके हाथ की लिखी है, इसमें कोई सन्देह न रहा । सुचरिता पर जो हारान बाबूका एक विशेष अधिकार है यह गोरा जानता था । इस अधिकार में कोई अन्तर ना पड़ा है, यह वह न ,