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गोरा

३६८ ] गोरा विनय से सिर मुक्का कर कहा लेकिन माँ, मैं तो चिट्ठी लिखकर बचन दे आया हूँ कि कल दीक्षा लूँगा ! अानन्द० -यह हो न सकेगा । परेश बाबू से अगर तू समझा कर कहेगा, तो वह कनी दीक्षा लेने के लिये तुझ पर दवाव न डालेंगे। विनय --परेश बाबू को इस दीक्षा लेने के मामले में कुछ उत्साह नहीं है ! वह इस अनुष्ठान में सम्मिलित नहीं हैं। श्रानन्द -तो फिर कुछ सोचना न होगा। विनय-~ना, माँ, बात पक्की हो गई है, अब लौयई नहीं जा सकेगी। आनन्द ० -- गोरा से तो कहा है ? विनय-गोरा के साथ मेरी भेंट नहीं हुई । खबर मिली है कि वह सुचरिता के घर गया था । इस समय आँगन में पालकी के कहारों की आवाज सुन पड़ी। किसी स्त्री के आने की कल्पना करके विनय वाहर चला गया । ललिता ने आकर आनन्दमयी को प्रणाम किया। अाज अानन्दमयी ने किसी तरह ललिता के आने की प्रत्याशा नहीं की थी। विस्मित होकर ललिता के मुख की बोर देखते ही वह समझ गई कि विनय की दीक्षा आदि के मामले को लेकर कहीं पर कुछ सङ्कट उपस्थित हुआ है और इसीसे ललिता इस समय उनके पास आई है। उन्होंने बात छेड़नेकी सुविधा कर देनेके लिने कहा-बेटी, तुम्हारे आनेसे मुझे बड़ी खुशी हुई। अभी विनय यहीं था, कल वह तुम्हारे समाजमें दीक्षा लेगा, यही जिक्र अभी मेरे साथ हो रहा था। ललिता-वह दीक्षा क्यों ले रहे हैं ? उसका क्या कुछ प्रयोजन है ? प्रानन्दमयीने विस्मित होकर कहा-प्रयोजन नहीं है बेरी ? ललिता-मैं तो सोचकर कुछ प्रयोजन नहीं देख पाती ? अकस्मात इस तरह दीक्षा लेने जाना उनके लिये अपमानकी बात है। यह अपमान कह काहेके लिये स्वीकार करने जाते है ?