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गोरा

मोटे अक्षर४०८] मोरा रही। गोरा ने कहा- मेरी वातको ठीक-ठीक समझना तुम्हारे लिए बड़ा कठिन है, यह मैं जानता हूँ। क्योंकि लगातार इतने दिनों तक एक सम्प्रदायके भीतर होने से इन सब विषयों पर. सहज दृष्टिपात करने की तुम्हारी शक्ति चली गई है । जब तुम अपनी मौसीके घरमें ठाकुरजीको देखती हो तब तुम केवल पत्थर को ही देखती हो । लेकिन मैं तुम्हारी मौसीके भक्तिपूर्ण हृदयको ही देखता हूँ । उसे देखकर क्या मैं कभी क्रोध कर सकता हूं या अपमान कर सकता हूँ क्या तुम समझती हो कि यह हृदय का देवता पत्थर का देवता है? मैं किसीको धर्मशिक्षा दे सकूँ ऐसी योग्यता मुझमें नहीं है; किन्तु मेरे देश के लोगों की भक्ति पर तुम लोग हसो, इसे मैं कभी नहीं सह सगा। तुम अपने देश के लोगोंसे पुकारकर कहती हो,-तुम मूर्ख हो, मूर्तिपूजक हो, मैं उन सभोंको दुल कर जताना चाहता हूं कि नहीं, तुम मूर्ख नहीं हो, तुम पौत्तालिक नहीं हो, तुम ज्ञानी हो, तुम भक्त हो। हम लोगोंके धर्म तत्व में जो महत्व है, भक्तित्व में जो गम्भीरता है, उस पर श्रद्धा-प्रकाश के द्वारा मै अपने देश के हृदय को जाग्रत करना चाहता हूँ । जहाँ उसकी सम्पत्ति है,वहीं उसके गौरवको में स्थापित करना चाहता हूँ। मैं अपने देश-वासियों का सिर नीचा होने न दूंगा। यही मेरा प्रण है । तुम्हारे पास मी आज मैं इसीलिए आया हूं । जव से मैंने तुमको देखा है तबसे एक नई बाते मेरे मनमें अनुभूत हुई है। इतने दिन तक मैं उस बातको न सोचता था। अब मैं समझता हूँ कि केवल पुरुषकी दृष्टिसे ही भारतवर्ष पूर्ण रूपसे देखा नहीं जायगा । हमारे देश की स्त्रियोंकी दृष्टि जिस दिन उस पर पड़ेगी उसी दिन उसका देखना सफल होगा। तुम्हारे साथ एक-दृष्टिसे मैं अपने देशको कब देखूगा, यह उत्कट इच्छा मेरे मन को जला रही है। अपने भारतवर्ष के लिये हम अकेले मरने को तैयार हैं, किन्तु बिना तुम्हारी सहायताके उसका अन्ध- कार यूरे तौर से दूर न हो सकेगा | अगर तुम उससे दूर रहोगी तो भारत- वर्ष की सेवा जैसी चाहिए, न होगी। ।