पृष्ठ:गोरा.pdf/४१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
[ ४१५
गोरा

गोरा 1 लाँधना चाहते हो तो इसके लिए तुमको समाजसे बड़ा बनना होगा। यदि तुम अपनेको बड़ा न बना सकोगे तो समाज-वन्धनको तोड़कर निकल जाना तुम्हारे लिए श्रेयस्कर न होगा । तुम्हारा प्रेम, और तुम्हारा सम्मिलित जीवन, केवल प्रलय-शक्तिकी सूचना न देकर उत्पत्ति और पालनका तत्व धारण करे, इस पर सदैव ध्यान रखना होगा। केवल इसी एक काममें सहसा एक प्रचण्ड दुःसाहस दिखलानेसे काम न चलेगा। इस दुःसाहसके अनन्तर तुमको अपने जीवन के समस्त कार्यको वीरतत्व-सूत्रमें गुथना होगा; नहीं तो तुम बहुत नीचे उतर आओगे ! क्योंकि बाहरसे समाज तुमको सर्वसाधारण श्रेणीमें भी नहीं रख संकगा। यदि तुम अपने प्रनावसे इन साधारण मनुष्योंकी अपेक्षा बड़े न हो सकोगे तो साधारण लोगोंकी वाट में भी दुम छोटे बँचोंगे। वे लोग . भी तुम्हें नीची दृष्टि से देखेंगे। तुम्हारे भविन्य शुभाशुनके लिए मेरे मनमें यथेष्ट श्राशङ्का बनी है। किन्तु इस अशङ्काके कारण तुमको राक रखनेका मुझे कोई अधिकार नहीं। क्योंकि संसार में जो साहस करके अपने जीबनके द्वारा नये-नये प्रश्नों को नौमांसा करने को तैयार हैं वे ही समाज को बड़ा बना सकते हैं। जो केवल सामाजिक नियम मान कर चलते हैं। वे केवल समाज को दाते है, उसे आगे बढाना नहीं चाहते । इसलिये मैं अपनी भीरखा और चिन्ता लेकर तुम्हारा मार्ग न रोऊँगा । तुमने जिसे अच्छा समझा है, अनेक विन्न रहते मी उसका पालन करो। ईश्वर तुम्हारी सहायता करे । इश्वर अपनी सृष्टि को किसी एक अवस्थामें बाँधकर नहीं रखता। वह सबको अनेक अवस्थाओं में बदलता रहता है। जो संस्मरके पथ-प्रदर्शक हैं वही तुम लोगों का मार्ग दिखावे मेरे ही मार्ग से तुमको सदा चलना होगा, ऐसा आदेश मैं नहीं दे सकता । तुम्हारी अवस्थाकं जब हम थे तब हम भी रस्सी खोलकर किनारेसे सम्मुख वायुकी ओर नाव ले चले थे किसी के निषेध वाक्य पर हमने ध्यान न दिया था। आज भी उसके लिए.. हम पश्चात्ताप नहीं करते । यदि अनुताप करने का कारण संग- ।