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गोरा

गोरा ठित होता तो उसी, से क्या ? मनुष्य भूल करेगा, उसके कितने ही साधन व्यर्थ भी होगे, वह दुःख भी पावेगा किन्तु इससे वह हाथ पर हाथ रख- कर बैठ न रहेगा। जो उचित समझेगा उसके लिए वह अात्म समर्पण करेगा ही। इसी तरह यह निर्मल-जलवाली संसार-नदी की धारा चिरकाल तक बहती रहेगी। इससे कभी कभी किनारा टूटकर कुछ कालके लिए क्षति पहुँच सकती है, इस भयसे उसके प्रवाहको बांध देना प्रलयको बुलाना है, यह मैं मली भांति जानता हूँ । अतएव जो शक्ति तुमको अनिवार्य वेगसे सामाजिक नियमके बाहर खींचकर लिए जा रही है उसी को भक्तिपूर्वक प्रमाण करके मैं उसके हाथ तुम दोनों को सौंपता हूँ । वही दोनोंकी जीवन-सम्बन्धी सारी निन्दा, ग्लानि और आत्मीय जनोंके चिरविच्छेदको सार्थक करे । जो तुम दोनों को दुर्गम पथ पर लिए जा रही है वही तुमको गन्तव्य स्थान तक पहुँचा देगी।" इस चिट्ठीको पढ़कर गोरा चुप हो रहा । उसे चुप देख विनयने कहा-परेश बाबूने अपनी ओर से जैसी सम्मति दी है वैसे ही तुमको भी सम्मति देनी पड़ेगी। गोरा-परेश बाबू सम्मति दे सकते हैं, क्योंकि नदीकी जिस धारा मे किनारे टूटते हैं, वह उन्हीं की है; परन्तु मैं सम्मति नहीं दे सकता, क्योंकि हमारी धारा किनारे (वंश) की रक्षा करती है। हमारे इस किनारे पर हजारों लाखों वर्ष की गगनभेदी कीर्ति विद्यमान । हम कुछ नहीं कह सकते, यहाँ प्रकृति का नियम ही काम करेगा। विनय ने कहा- अच्छा तुम इतना ही बतलाश्रो कि तुम हमारे इस विवाह को पसन्द करोगे या नहीं। गरा-नहीं करूँगा, कदापि नहीं । विनय-और-- गोरा और क्या, तुम्हें छोड़ दूँगा ! तुमसे कोई सम्पर्क न रक्तूंगा। . -