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गोरा

४२२] गोरा बह कुछ देर चुप रहकर बोला—ये ब्राह्म-समाजमें हैं। इनको बरा-- बर इसी तरह सबके साथ मिलते देखता हूँ, इसीसे मैंने इस बात पर कमी ध्यान नहीं दिया। हरिमोहिनी वह ब्राह्म-समाजमें है, यह बात मैंने मान ली, किन्तु तुम तो हिन्दू-समाजमें हो, तुम तो इन बातोंको कभी पसन्द नहीं करते बड़ी रात तक, तुमने उसके साथ बात-चीतकी, तो भी तुम्हारा कहना खतन न हुा । अाज फिर सबेरे ही था पहूँचे । वह मी सबेरे से तुम्हारे पास बैठी रही न भारडार में गई न रसोई घरमें गई । अाज एकादशी के दिन वह मेरी कुछ सहायता करती, यह भी उससे न हुआ। क्या यही शिक्षा उसको दी जा रही है । तुम्हारे घर में भी तो दहूँ बेटियाँ है क्या घरका सभी काम-धन्धा बन्द करके तुम उन्हें भी ऐसी ही शिक्षा देते हो गोरा के पास इन बातोंका कोई उत्तर न था उसने इतना ही कहा- ये ऐसी ही शिक्षा पाकर इतनी बड़ी हुई है इसलिए मैं इनके साथ बातचीत करने में कुछ बुरा नहीं मानता! हरिमोहिनी ----वह भले ही शिक्षा पाए हुए हो किन्तु जितने दिन मेरे पास है, और मैं जब तक जीती हूँ, यह बात न चलेगी । उसको मैं बहुत कुछ उस रास्तेसे लौय लाई हूँ। जब मैं परेश वाबू के घर में थी तष चारों ओर यह अफवाह फैल गई थी कि मेरे साथ मिलकर वह हिन्दू हो गई है। इसके बाद इस घर में आने पर न मालूम तुम्हारे विनय के साथ क्या-क्या बातें होने लगी। फिर उसका मिजाज बदल गया । सुना है,अब वे ब्राह्म कन्यासे व्याह करने जाते हैं, जायें । बड़ी-बड़ी कठिं- नाईसे विनयको यहाँसे हटाया है । एकके हटते ही फिर दूसरा आ गया । हारान नामका एक आदमी आने लगा । उसे जब मैं आते देखती थी, मट सुचरिता को लेकर ऊपरके कमरे में जा बैठता था वह अपना अधिकार यहाँ न जमा सका इस तरह मैं उन लोगों से बचकर इसे बहुत कुछ अपने मत पर ला सकी हूँ। इस मकानमें आने पर उसने सबका छुन्ना खाना प्रारम्भ किया था। कलसे उसने ऐसा करना बन्द