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गोरा

४२४ ]. गोरा गोराने इस संबन्ध में अधिक पूछताछ करना उचित न समभा, पर तो भी वह बिना पूँछे न रह सका । पूँ.छा. [-क्या कोई उपयुक्त वरः कहीं ढूंढा। हरिमोहिनी-हाँ हूँढ़ा तो है । वर अच्छा ही है, कैलास--मेरा देवर । कुछ दिन हुए, उसकी स्त्री मर गई । पसन्द लायक सयानी लड़की नहीं मिलती, इसीसे इतने दिन से बैठा है नहीं तो वैसा बाँका लड़का कहाँ मिलेगा। राधारानी के साथ उसका ठीक मिलान होगा। गोरा के हृदय में जितनी ही सुइयाँ चुभने लगी उतना ही वह कैलास के सम्बन्ध में प्रश्न करने लगा। हरिमोहिनीके देवरों में कैलास ही अपने विशेष यत्नसे थोड़ा बहुत लिखा पढ़ा था। कहाँ तक पढ़ा था, यह हरिमोहिनी न बतला सकी। अपने भाई-बन्धुओंमें वही विद्वान कहा जाता है। गाँवके पोस्टमास्टरके खिलाफ जिले में जो दरख्वास्त दी गई थी। वह कैलासचन्द्र के ही हाथ की लिखी थी। उसने ऐसी सुललित भाषा में सब बातें लिख दी थी कि पोस्ट अफिसका एक बड़ा बाबू स्वयं आकर तहकीकात कर गया था । इससे गाँवके सभी लोगों ने कैलासकी योग्यता पर आश्चर्य प्रकट किया । इतनी गंभीर शिक्षा पाने पर भी प्राचार और धर्ममें कैलासकी निष्ठा कुछ कम नहीं हुई है। कैलासका सारा इतिहास सुन लेने पर गोरा उठ खड़ा हुआ । हरि- मोहिनीको प्रणाम करके वह चुपचाप चलता हुआ। जीनेसे उतरकर गोरा जब आँगनसे सदर फाटक की ओर जा रहा था तब आँगन के एक ओर रसोई घर में सुचरिता रसोई बनाने में लगी हुई थी । गोराके पैरोंकी आहट पाकर वह द्वार पर आ खड़ी हुई । गोरा किसी ओर दृक्-पात न करके बाहर चला गया । सुचरिता लम्बी साँस लेकर फिर रसोई के काम में लगी। गोरा जव गलीके मोड़ के पास आया तब हारान बाबू से उसकी मेट हुई । हारान बाबूने जरा हँसकर कहा आज इतने सबेरे ही। -