पृष्ठ:गोरा.pdf/४२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
[ ४२७
गोरा

गोरा [४२७ - तीन स्वर में बोले–मालूम होता है, इसीसे गोरा बाबू सबेरे-शाम अाकर तुमको मन्त्र देते हैं ! सुचरिता नजर नीची किये ही बोली हाँ, मैंने उन्हींसे मन्त्र लिया है, वही मेरे गुरु है। हारान बाबू इतने दिन तक अपने ही को सुचरिता का गुरु जानते थे। किन्तु उनका गुरुत्व-अधिकार आज गोरा ने छीन लिया है; सुचरिता के मुँह से यह बात उनको बरछी की तरह छिदने लगी। उन्होंने कहा-~-तुम्हारे गुरु चाहे जितने बड़े लोग हो, क्या तुम समझती हो कि हिन्दू समाज तुमको ग्रहण करेगा ? सुचरिता ----यह बात मैं नहीं जानती, समाजको भी नहीं जानती। मैं सिर्फ यही बानती हूं कि मैं हिन्दू हूं। हारान बाचूने कहा तुम जान रक्खो कि इतने दिन तक तुम कँवारी रही। अब तक तुम्हारा विवाह नहीं हुअा ! इतने ही से तुम हिन्दू-समाजमें आग्राह्य हो गई, तुम्हारी जाति जा चुकी है। सुचरिता ने कहा- इसका अाप धृथा शोच न करें किन्तु मैं आपसे फिर कहती हूँ- मैं हिन्दू हूँ। हारान बाबू ने कहा -परेश बाबू से जो धर्म शिक्षा पाई थी, वह भी तुमने अपने नये गुरु के पैरों तले विसर्जन कर दी ! सुचरिता - मेरा धर्म क्या है सो अन्तर्यामी जानता है । उस बात पर मैं किसीके साथ कोई आलोचना करना नहीं चाहती । अाप जान लीजिए, मैं हिन्दू हूँ। हारान बाबू अपेसे बाहर बोल उठे--तुम चाहे कितनी बड़ी हिन्दू ही क्यों न बनो, उससे कोई फल न होगा। यह मैं तुमसे कहे जाता हूँ | गोरा को तुम विनय न समझो। तुम अपने को हिन्दू-हिन्दू कहकर गला फाड़कर मर भी जाओगी तो भी गोरा बाबू तुमको ग्रहण करें, ऐसी आशा तुम स्वप्न में भी न करो। शिष्यको लेकर गुरुग्राई करना