पृष्ठ:गोरा.pdf/४२९

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[ ६३ ] सुचरिताके सामने खुलकर मन लगाकर जैसे गोराने बातकी है, वैसे और किसीके श्रागे नहीं की। किन्तु अाज हरिमोहिनीकी बातें सुनकर एकाएक उसे खयाल आ गया कि ऐसी ही मुग्धता देखकर एक दिन उसने विनय को यथेष्ट तिर- कार किया था, उसकी दिल्लगी उड़ाई थी। आज वह अज्ञात भाव से अपने को उसी अवस्थाके बीच खड़े होते देखकर चौंक उठा। गोरा जब घर पहुँचा तव देखा माँ फर्श पर बैठी आँखों पर चश्मा चढ़ाये एक कापी लिये हुये कुछ लिख रही हैं । गोराको देखकर, चश्मा उतारकर कापी बन्दकर, उन्होंने कहा-बैठो। गोराके बैठने पर श्रानन्दमयीने कहा-तुम्हारे साथ मुझे एक सलाह करनी है । विनयके व्याहकी खबर तो सुन चुके हो । गोरा चुप रहा । आनन्दमयीने कहा -विनयके चाचा नाराज हो गये हैं, वे लोग कोई न आवेंगे। उधर परेश बाबूके घरमें भी इस व्याहके होने में सन्देह है। विनय को ही दोनों श्रोरका सारा बन्दोबस्त करना होगा। इसीसे मैं कह रही थी कि हमारे उत्तर के हिस्सेका घर तो किराये पर उठा हुआ है-उसके ऊपरी खरडका किरायेदार चला गया है। उसी दूसरे खण्डमें अगर विनयके व्याहका प्रबन्ध किया जाय तो पड़ी सुविधा होगी। गोरा-क्या सुविधा होगी। आनन्द-मैं न रहूँगी, तो उसके व्याहमें सब देखे सुनेगा कौन ! वह तो बड़ी आफत में पड़ जायगा । उस घर में अगर व्याहका टीक हो ४२६