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गोरा

गोरा fy आनन्द.--यह कैसी बात है गोरा, तू कहता क्या है अपने विनयके व्याहमें मैं न शामिल हूँगी, तो और कौन होगा। गोरा-यह किसी तरह न हो सकेगा माँ। आनन्द०-गोरा ! विनयके साथ तेरा मत न मिले तो कोई गत नहीं लेकिन इसीके लिये क्या उसके साथ शत्रुता करनी चाहिए । गोरा कुछ उत्तेजित हो उठकर कहने लगा-माँ, यह तुम अन्यायकी बात कह रही हो । आज जो मैं विनय के ब्याह में हँसी खुशी के साथ शामिल नहीं हो सकता यह मेरे लिने सुख की बात नहीं है। विनयको मैं कितना चाहता हूँ वह बात और कोई भले ही न जाने तुम तो जानती हो । किन्तु माँ, यह लेह की बात नहीं है-इसके भीतर शत्रुता मित्ता रत्ता भर नहीं है। विनय इसके सब फलाफलका जान बूझकर ही काम करने जा रहा है । हमने उसे नहीं छोड़ा उसाने हम लोगों को छोड़ दिया है अतएव इस समय जो विच्छेद हुत्रा है उससे उसे ऐसी कोई चोट न पहुँची जो उसकी प्रत्याशा से पर हो । आनन्द०-गोरा, यह बैंक है कि विनय जानता है कि इस ब्याहमें तुम्हारे साथ उसका किसी तरह का सम्बन्ध नहीं रहेगा। किन्तु यह भी वह निश्चय जानता है कि इस शुभ कर्ममें मैं उसको किसी तरह त्याग न कर सकूँगी । उसकी स्त्रीको मैं आशीर्वाद करके घरमें न लाऊँगी----यह बात अगर विनय समझता-तो मैं सब कहती हूं वह प्राण निकल जाने पर भी यह ब्याह न कर सकता मैं क्या विनय के ननको नानती नहीं । यह कहकर आनन्दमयीने आँखके किनारेसे एक बूंद स् पोछ बाला। विनयके लिये गोराके मन में जो गहरी वेदना थी वह उन्मयित हो उठी। तथापि उसने कहा --माँ तुम समाजमें हो और समाजके निकट ऋणी हो-यह बात तुम्हें याद रखनी होगी। आनन्द० -गोरा मैं तो तुमसे बार बार कह चुकी हूँ कि समाबके साथ मेरा सम्बन्ध बहुत दिनसे टूट चुका है। उसके लिये समाज के घृणा करता है और मैं भी उससे दूर रहती हूं!