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गोरा

गोरा [४३३ जान पड़ता है, इसी फागुनके महीने में होगा । अब तक घरमें जितनी दफे कुछ सामाजिक काम काज हुअा है, मैं किसी-न-किसी बहानेसे गोरा को लेकर और जगह चली गई हूँ। वैसा बड़ा कोई काम-काज भी तो इस बीच में नहीं हुआ। लेकिन अबकी शशीके ब्याह में उसके लिए क्या प्रबन्ध करोगे ? अन्याय रोज ही बढ़ता जा रहा है । मैं भगवान के आगे दोनों बेला हाथ जोड़कर क्षमा-प्रार्थना करती हूँ -यह जो दण्ड देना चाहें, सो मुझीको दें किन्तु मुझे डर लगता है कि अब गोरा को रोका ना जा सकेगा ---उसे लेकर जरूर मुश्किल होगी। अब मुझे याज्ञा दो, मेरै भाग्यमें जो बढा होगा, सः होगा, मैं उसने सब हाल दुलामा करके कह दूँ. कृष्णदयालने कहा - तुम क्या पागल हो गई हो ! यह बात आज जाहिर होनेसे मुझे कठिन जवाबदेहीका सामना करना पड़ेगा-पेंशन तो बन्द हो ही जायगी, शायद पुलीस भी श्राफत मचावें । जो हो गया, सो हो गया, जहाँ तक जितना समानकर चल सको वहाँ तक संभालो : अगर न संभाल सको, तो उसमें भी विशेष दोन न होगा। कृष्दयालने ठीक कर रखा था कि उनकी मृत्यु के बाद जो होना हो, सो हो । वह फिर स्वतन्त्र हो जायेंगे। मरनेके बाद वह न जान सकेगे कि और पर क्या गुजरी। फिर उन्हें उन सब बातों पर हन्दि करनेकी, या घबरानेकीं, कुछ दरकार न होगी। क्या करना चाहिए, यह कुछ भी निश्चित न कर सकनेके कारण उदास मुँह लिये अानन्दमयी उढ़ कर चली आई। फार्म नं० २८