पृष्ठ:गोरा.pdf/४३४

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प्रातःकाल संध्यांपूजा करके गोराने अपनी बैठकमें जाते ही देखा, परेश बाबू बैठे हैं । उसके हृदयके भीतर जैसे एक बिजली की लहर दौड़ गई। गोराकी नस-नस तक यह बात माने बिना न रह सकी कि परेश के साथ किसी एक सूत्रसे उसके जीवन को एक निगूढ़ श्रात्मीयताका योग है। गोराने परेशको प्रणाम किया ? परेशने कहा- विनयके व्याहकी बात तुमने अवश्य सुनी होगी। गोरा-हाँ। परेश-वह ब्राझ मतसे व्याह करने को तैयार नहीं है। गोरा -तब तो उसे व्याह करना ही मुनासिब नहीं है। परेश जरा हँस दिये इस बात को लेकर कुछ बहस नहीं की। उन्होंने कहा-हमारे समाजका कोई आदमी इस व्याहमें शरीक न होगा । सुनता हूँ, विनयके आत्मीयों में से कोई नहीं आने वाला है। अपनी कन्या की ओर केवल मैं हूं, और विनयकी ओर जान पड़ता है, तुम्हारे सिवा और कोई नहीं है। इसीलिये इस बारे में तुम्हारे साथ सलाह करना है। गोराने सिर हिलाकर कहा-इस बारेमें मेरे साथ सलाह किस तरह होगी। मैं तो इसके बीच में नहीं हूं। परेशने विस्मित होकर गोराके मुखकी ओर पण भर देखते रह कर कहा-तुम नहीं हो! परेशके इस विस्मयसे दम भरके लिए गोराको सोच मालूम हुना। मगर सङ्कोच मालूम पड़ने के कारण ही उसी दम दूनी दृढ़ता के साथ उसने कहा-मैं इस व्याहमें कैसे रह सकता हूँ। परेश-मैं जानता हूँ कि तुम उके मित्र हो ।