पृष्ठ:गोरा.pdf/४३७

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1 हरिमोहिनीको उसके देवर कैलासका पत्र मिला । वह लिखता है- "आपकी चरणोकी कृपासे यहाँ कुशल है, आप अपने कुशल-समाचारसे हमारी चिन्ता दूर कीजिए।" कहना व्यर्थ है कि हरिमोहिनीने जवसे उनका घर छोड़ा हैं तवसे वे इस चिन्ताको बराबर सहन करते आये हैं, तथापि कुशल समाचार जानने के लिए आज तक उन लोगोंने कभी कोई चेष्टा नहीं की थी। किन्तु हरिमोहिनीसे इस व्याहकी बात सुनते ही अब उनकी चिन्ता असह्य हो उठी है। कैलासने घर भरके लोगों की अोरसे प्रणाम और कुशल-प्रश्न लिखकर अन्तमें लिखा था--"श्राप जिस लड़की की बात लिखती है उसका सव हाल खुलासा लिखिये । आपने कहा है, उसकी उन १२-१३ वषै की होगी। जान पड़ता है, लड़की बढ़नहार है, देखने में कुछ बड़ी मालूम होती होगी। इससे कोई विशेष हानि नहीं। उसकी जो सम्पत्तिकी बात लिखी है, उसमें उसका स्वत्व कैसा है यह जांच कर लिखिये तो मैं अपने बड़े भाईको सूचित कर उनकी सलाह लूंगा। शायद उनकी असम्मति न होगी । यदि फुरसत मिलेगी तो पाकर लड़की को देख लूँगा।" हरिमोहिनीने इतने दिन किसी तरह कलकत्तेमें रहकर समय बिताया था। किन्तु जब उसके मनमें ससुराल देखनेकी आशा अंकुरित हुई.तब एकदम अधीर हो उठी। विदेश का रहना उसे अत्यन्त लशकर मालूम होने लगा। दिन रात यही चाहती थी कि कब यहाँ से भागूं । बह इस चेम्टा में लगी कि अब सुचरिताको किसी तरह राजी करके व्याहका दिन .चुपचाप नियतकर ऊपर ही ऊपर काम निकाल लूंगी तो भी झटपट कोई काम करनेका साहस उसको न हुना। ।