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गोरा

[re ललिता-मैं किसीके योग्य हो इसके लिए तो प्रार्थना और मेरे योग्य कोई हो इसके लिए प्रार्थना नहीं ! वाह ! इस सम्बन्धमें एक बार उनसे बात करके देखो उनका मत क्या है सो सुन लो । नहीं तो तुम्हारे मनमें भी अनुताप होगा कि इतने बड़े अद्भुत मनुष्य का आदर इतने दिन तक हमसे कुछ क्यों न हो सका। तुम अपनी इस अज्ञानता पर अब भी बिना पछताये न रहोगी । सुचरिताने कहा-जो हो, इतने दिन पर तो उसे तुम्हारा जैसा एक जौहरी मिला है। उस अनमोल रत्नके मूल्पमें जो तुम सर्वस्व देना चाहती हो उसमें अब पछताने की कोई बात नहीं। मेरे सदृश गवाँरसे आदर पानेकी उसे अब जरूरत ही न होगी। "होगी नहीं खूब होगी !" यह कहकर ललिताने खूब बोरसे सुचरिता का गाल मल दिया। वह "हिस" कर उठी । ललिताने फिर हँसकर कहा-मुझ पर तुम्हारा आदर बराबर बना रहना चाहिए यह न होगा कि मुझे धोखा देकर किसी और का आदर करने लग जात्रो! सुचरिता ने ललिताके गाल पर गाल रखकर कहा--किसी को नहीं, किसी को न दूंगी-तुम चाहे जिसे दो। ललिताने कहा-किसी को नहीं ! एक दम किसी को नहीं ! सुचरिता सिर्फ अस्वीकार-बोधक सिर हिलाया । तब ललिता जरा हटकर बैठी और बोली- देखो बहन, तुम तो जानती हो, तुम और किसीको आदर देती तो मैं कदापि स न कर सकती। इतने दिन तक मैंने तुमसे न कहा था अाज कहती हूँ | जब गौर बाबू मेरे घर आते थे तब-बहन, मुझे जो कुछ कहना है, आज अवश्य कहूँगी। मैंने तुमसे कभी कोई बात नहीं छिपाई। किन्तु नहीं जानती, यह एक बार मैंने तुमसे कभी क्यों नहीं कहीं। इसके लिये मेरे मनमें बड़ा ही कष्ट है । वह बात अाज बिना कहे मैं तुम्हारे पाससे विदा न हो सकेंगी। जब गौर बाबू मेरे घर आते थे तब मुझे बड़ा क्रोध होता था ? क्रोध क्यो होता था ! तुम समझती थी कि मैं कुछ जानती ही नहीं ? मैंने देखा, तुम