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गोरा

गोरा उपाय सोचा है। परेश भट्टाचार्य मेरे साथ ही पढ़ते थे । स्कूल इन्स्पेक्टरीके कामसे पेंशन लेकर वह इस समय कलकत्ते में ही कर रहे है। वह कट्टर ब्रह्म समाजी हैं । सुना है उनके यहाँ कई लड़कियाँ मी हैं । गोराको उनकी घरमें अगर आने जाने दिया जाय, तो वहाँ आते जाते संभव है कि उनके कोई लड़की गोराको पसन्द आ जाय । उसके बाद जैसी ईश्वरकी इच्छा होगी। प्रानन्द कहते क्या हो ! गोरा एक ब्राह्मके घर आये जायेगा ? उसका अब वह समय नहीं है। अब वह कट्टर हिन्दू है--ब्राह्मोसे उसे घोर धृणा है। बात पूरी भी नहीं होने थी कि खुद गोरा अपने मेघ गर्जन सदृश स्वरसे "माँ" कह कर वहाँ आ गया । कादयालको वहाँ बैठे देख कर उसे कुछ आश्चर्य हुआ । आनन्दमयी चटपट उठकर गोराके पास गई और दोनों आँखों से स्नेहकी वर्षा करती हुई बोली-क्यों वेटा क्या चाहिए ? ना, कोई खास बात नहीं है, इस समय रहने दो!--कहकर गोराने लौट जानेका विचार किया। कृपयालने कहा -जरा बैठ जाओ, तुमसे एक बात कहनी है। मेरे एक ब्राह्म मित्र अभी कलकत्ते आये हैं । वह हेदोतला मुहल्ले में गोरा–परेश बाबू तो नहीं ? या —तुमने उन्हें कैसे जाना ? गोरा-विनय उनके घरके पास ही रहता है। उसी से मैंने उनका हाल सुना है। कुष्ण-मेरी इच्छा है कि तुम उनसे मिलकर उनकी खैर खबर ले प्रायो। गोराने अपने मनमें जरा सोचा उसके बाद एकाएक कह उठा- मैं कल ही जाऊँगा?