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गोरा

vraj मोग अब मैं बुढ़िया हुई। हिन्दू-धर्म में जो-जो काम करना चाहिये वह बालपनसे ही करती आती हूँ और बहुत कुछ देखा सुना भी है। तुम यह सब कुछ नहीं जानती । इसीलिए गोरा तुम्हारा गुरु बनकर तुम्हें ठग रहा है ! उनकी बातें कुछ-कुछ सुनी है। उनमें कहीं शास्त्र-सम्बन्धी विषय का लेश नहीं। वह सब अपने बनाये शास्त्र की बातें करता है। मेरे पास उसकी सब कलई खुल गई है। तुम कलकी लड़की हो, यह सब बातें क्या जानोगी ! मैंने सच्चे गुरु से उपदेश पाया है। मैं तुमसे कहे देती हूँ, तुमको यह कुछ न करना होगा । जब समय आवेगा तब सब कुछ आप ही हो जायगा। मेरे जो गुरु हैं वे ऐसे धूर्त नहीं है । वे तुमको मन्त्र देगे । तुम डरो मत, जैसा होगा मैं तुमको हिन्दू समाज में ले आऊँगी । तुम ब्राह्म-घर में थी या न थीं; यह कौन जानता है ! तुम्हारी उम्र कुछ अधिक हो गई, इससे क्या ऐसी बड़ी-बड़ी तो लड़कियां हैं। तुम्हारी जन्मपत्री तो किसी ने देखी नहीं है ! और जब तुम्हारे पास रुपया है तब किसी तरह का कोई वित न होगा। सब हो जायगा। तुम घबरानो मत मल्लाहके लड़के को कायस्थ बनाकर समाज में चलते मैंने अपनी आँख से देखा है। मैं हिन्दू-समाज में ऐसे कुलीन घर तुमको चला दूंगी कि किसी की मजाल नहीं, जो कुछ बोल सके । वही समाज के मुखिया हैं। इसके लिए तुमको इतनी असाध्य साधना, इतनी गुरू-भक्ति न करनी होगी। इतना रो-धोकर मरना न होगा। --- हरिमोहिनी जब ये-बातें विशद रूपसे कह रही थी, तव सुचरिता को भोजन जहर सा मालूम हो रहा था। वह मुहमें कौर देती थी, परन्तु निगला नहीं जाता था। उसने बड़ी मुश्किलसे कुछ खाया। । हरिमोहिनी ने जब सुचरिता से कोई उत्तर न पाया तब उसने मन में कहा- यह बड़े गुरु की चेली है, यह मेरा कहा न मानेगी ।