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गोरा

गोरा [ अद्भुत रूपसे पाया है कि अब उसे किसी तरह भूल नहीं सकती । मैं आपसे सच कहती हूँ, मैं हिन्दू हूँ, यह बात पहले किसी तरह मेरे मुँह से नहीं निकल सकती थी। किन्तु अब मेरा मन बड़ी दृढ़ताके साथ निःसंकोच हो कह रहा है, मैं हिन्दू हूँ । इसमें मैं एक विशेष आनन्दका अनुभव कर रही हूँ? इसी समय एक आदमीने आकर परेश बाबू के हाथ में एक चिट्ठी दी। परेश बाबूने कहा चश्मा नहीं है, कुछ अंधेरा भी हो गया है। सुचरिता तुम्ही चिट्ठी पढ़ो। सुचरिता ने चिट्ठी पढ़कर उन्हें सुना दी । ब्राह्म-समाज की एक कमेटी से उनके पास यह पत्र आया है, उसके नीचे अनेक ब्राह्म-समाजियों के हस्ताक्षर है । पत्र का साराँश यही है कि परेश बाबू ने ब्राह्म-मतक प्रतिकूल अपनी कन्या के विवाह में सम्मति दी है और वे उस विवाह में भी योग देनेको प्रस्तुत हुए हैं । ऐसी अवस्था में ब्राह्म-समाज किसी तरह उन्हें सभ्य श्रेणी में नहीं रख सकता । यदि उनको इस विषय में कुछ कहना हो तो आगामी रविवार के पहिले ही उनके हाथ का पत्र सभा के पास आना चाहिए । उस दिन उस पर विचार करके अधिकाँश लोगोंक मत से अन्तिम निश्चय होगा। परेश बाबू ने चिट्ठी लेकर पाकेट में रख ली। वे फिर धीरे-धीर टहलने लगे सुचरिता भी उनके पीछे-पीछे घूमने लगी ! क्रमशः साँझका अँधेरा घना हो उठा । बाग के दाहिने पास के गली में रोशनी जलती देख पड़ी । सुचरिता ने कोमल स्वर में कहा--आपके उपासना करनेका समय हो गया है। आज मैं आपके साथ उपासना करूँगी। यह कहकर सुचरिता उनका हाथ पकड़ उन्हें उपासना-गृह में ले गई ! वहाँ पहले ही श्रासन विछा था और एक मोम-बत्ती जल रही थी। परेश- बाबू ने आज बड़ी देर तक चुपचाप उपासना की ! अन्त में एक छोटी सी प्रार्थना करके वे आसन से उठ पड़े। बाहर आते ही देखा, उपासना- गृहके दर्वाजे के पास बाहर ललिता और विनय चुपचाप बैठे हैं । उन