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गोरा

गोरा दोनोंने झट उनके पैर छूकर प्रणाम किया। परेशाने उनके सिर पर हाथ रख मन ही मन आशीवाद दिया। फिर सुचरिता से कहा- बेटी कल तुम्हारे यहाँ बाऊँगा। श्राज कुछ काम करना है। यह कहकर अपने कोठे में चले गये। उस समय सुचरिता की आँखोंसे आँसू गिर रहे थे। वह चित्रक्त निश्चेष्ट हो चुपचाप बरामदे के अन्धकारमें खड़ी रही: सुचरिता जब जाने को उद्यत हुई तव विनयने उसके सामने श्राकर मीठे स्वरमें कहा-बहन, तुम हमें आशीर्वाद न दोगी। यह कहकर ललिताको साथ ले धिनयने सुचरिता को प्रणाम किया । सुचरिताने गद्- कर उसे जो कहा वह उसके अन्तयाँमी के सिवा और किसी ने न सुना । परेश बाबूने अपने कोठेमें आकर ब्राहम-समाज की कमिटीको पत्र लिखा । उसमें उन्होंने लिखा, ललिताके विवाहका काम मुझीको सम्पादन करना होगा । अब ईश्वरके निकट मेरी यही एकमात्र प्रार्थना है कि वे सब समाजों के आश्रयसे निकालकर मुझे अपने चरणों में शरण दें।