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गोरा

४५० ] गोरा हरिमोहिनी- तो मैं कहती हूं, सुनो; राधा रानी तो लोगों से कहती है, मैं हिन्दू हूँ ! अव उसकी मति गति हिन्दूधर्म की अोर फिर गयीं है । यदि वह हिन्दू समाज में आना चाहे तो उसे सावधान होकर रहमा पड़ेगा। अभी से तो कितनी कच्ची-पकी बातें लोग बोलेंगे परन्तु मैं उनकी बात चलने न दूंगी : तो भी अबसे इसे संभल कर चलना चाहिये। लोग तो पहले वही पूछ बैठेंगे कि इतनी बड़ी उम्न हो गई, अब तक इसका ब्याह क्यों न हुआ ? इस बात को किसी तरह छिपा देने से हिन्दू समाज मान लेगा, अच्छा वर खोजने से न मिलेगा यह भी नहीं। किन्तु यह यदि फिर अपनी पुरानी चाल पकड़ेगी तो मैं क्या करूँगी, कहाँ तक जमालूंगी ! तुम तो हिंदू घर की स्त्री हो, तुम तो सब जानती हो, तुम ऐसी बात किस मुँह से कहती हो ! अगर तुम्हारी अपनी होती तो क्या तुम उसे इस विवाह में जाने देती ? तुमको तो दिन-रात इसी बात को चिन्ता लगी रहती कि लड़की का व्याह कब कैसे हो। आनन्दमयी ने विस्मित होकर सुचरिता के मुँहकी ओर देखा । उसका हुँह क्रोध से लाल हो गया था । श्रानन्दमयी ने कहा--मैं कोई जोर देना नहीं चाहती, अगर सुच- रिता को जाने में उन हो तो मैं- हरिमोहिनी बोल उठी-तुम लोगों का भाव कुछ भी मेरी समझ में नहीं अस्ता.। तुम्हारा ही बेन तो इसे हिंदू मत में लाया है और तुम कुछ बानती ही नहीं ! जैसे तुम आकाश से उतर आई हो! बो हरिमोहिनी परेश वाचूके घरमें अपराधिनीकी तरह डरकर रहती थी, जो किसी के अपना और अब भी अनुकूल पाकर उसे एकांत आग्रह के साथ रहती थी वह हारेननी आज कहाँ है! अपने अधि. सारको सुरक्षित रखने के लिये वह आज दाघिनकी तरह खड़ी है। .उसकी तुचारिता को उसके पास छीन लेनेके लिए चारों ओर भाँति- मौत की शक्तियाँ लगाई जा रही हैं, इस संदेहसे बरावर चौकन्नी रहती है ! कौन हित है, कौन अतहित, यह भी वह नहीं समझती । इस