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गोरा

गोरा गोरा उन्हें फिया किन्तु समाजके लोगों की सम्मति किसी तरह न पा सका । वे गोरा के ऊपर क्रुद्ध होकर कहने लगे--अच्छा तो है, ब्राह्मण लोग जब विध- बाओंका व्याह करेंगे तब हम लोग भी करेंगे। उनके क्रोधका प्रधान कारण यही है कि उन्होंने समझा, हीन जाति जानकर उनका अनादर करता है.--गोरा वही प्रचार करने श्राया है कि उनके जैसे लोगों के लिये अत्यन्त हीन अाचारको ग्रहण करना ही श्रेय है। गाँवामें विचर कर गोराने यह भी देखा कि मुसलमानोंके मीतर वह वस्तु है, जिसके सहारे उन लोगोंको एक करके खड़ा किया जाता है। गोराने ध्यान देकर देखा है कि गाँवमें कोई नापद-विपद उपस्थित होने पर मुसलमान लोग जैसी घनिष्टता के साथ परस्पर एक दूसरेसे पास श्रा कर जमा हो जाते हैं, हिंदु लोग वैसा नहीं करते । गोराने बार बार सोचकर देखा है कि इन दोनों निकटतम पड़ोसी समाजोंके बीच इतना बड़ा अन्तर क्यों हुआ ? जो उत्तर इसका उसके मनमें उदित होता है, उसे मानने के लिये किसी तरह उसका जी नहीं चाहता। शिक्षित समाजमें गोराने जब लेख लिखा है, बहस की है, व्याख्यान दिया है, तब वह औरोंको समझानेके लिये, औरों को अपनी राहमें लानेके लिए स्वभावतः ही अपनी बातोंको उसने कल्पनाके द्वारा मनोहर वर्णसे रंजित किया है। उसने स्थूलको सूक्ष्म व्याख्या से ढका है, अनावश्यक भगनावशेष मात्रको भी भावकी चन्द्रिकामें मोहमय चित्रकी तरह बनाकर दिखलाया है । देशके लोगोंका एक दल देशके प्रति विमुख है, देशकी भातों और वस्तुओंको बुरी दृष्टि से देखता हैं, यही समझ कर, गोराने सदेशके प्रति अपने प्रबल अनुरागके कारण, उस महत्व-विहीन दृष्टिपातके अपमानसे बचाने के लिये, स्वदेशकी सभी बातों और वस्तुओंको अति उज्ज्वल भावके श्रावरणसे टैंक रखनेकी दिन रात चेष्टा की हैं। ।