पृष्ठ:गोरा.pdf/४५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
४५८ ]
गोरा

४५८ गोरा घर और गाँवका सब कुराल समाचार आबोमान्न चुनाकर कैलाशने चारों ओर देखकर खूछा-~-माल होता है यह मकान उसीका है। हरिमोहिनी – हाँ। कैलाश-मकान पक्का है। हरिमोहिनीने उसके उत्साहको बढ़ाकर कहा-बक्का क्या, बिल्कुल कैलाश-क्यों भाभी, सात-हजार रूपया तो इसके बनवाने में लगा ही होगा? हरिमोहिनीने कैलासकी देहाती बुद्धि पर विस्मय प्रकट करके कहा- बाबू यह क्या कहते हो। सात-आठ हजार रुपया मा! बीस हजारसे एक कौड़ी कम खर्च नहीं हुआ। कैलाश फिर भी चारों ओर रक्खे हुवे सामानको मानसे देखने लगा। अब जरा सम्मति सूचक सिर हिलाने ह ने इतनी बड़ी इमारतकई मालिक हो सकता हूं, वह सोचनेसे उसको बड़ी तृप्ति हुई । घूछा-सब तो हुश्रा, लकड़ी कहाँ है? हरिमोहिनी झट बोली----फूफीके घरसे नेता अागा था। वहीं गा है, दो-चार दिनों में लौट आबेगी। कैलाश तो उसको देखंगा किस प्रकार ? मेरा एक मुकद्दमा है, कल ही जाना होगा हरिमोहिनी-अभी उस मुकद्दमेको मुलतवी रखो। वहाँका काम हुए बिना तुम नहीं जा सकते। कैलाशने कुछ सोचकर निश्चय किया कि मुहलत न लेनेसे मुद्दईको एक तरफ डिगरी मिलेगी। अच्छा. पौछे देखा जायगा । यहाँ उस क्षतिके पूर्ण होनेका पूरा सामान है। कैलाशने तब कन्याका रूप जाननेकी उत्सुकता प्रकट की । रिनोहिनीने कहा--उसे तो देखने हौसे जानोगे। पर तो भी मैं