पृष्ठ:गोरा.pdf/४६०

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[६९] विनय जानता था कि मोरा अाजकल सबेरे ही घरसे चल देता है। इसलिए वह सोमवार को बड़े तड़के उठकर गोराके धर उसके ऊपर वाले शयनग्रहमें जा पहुँचा। विनयने कहा--भाई श्राज सोमवार है। गोरा-हाँ जरूर ही सोमवार है। विनय--तुम तो शायद न जाओगे; शायद क्या, नहीं हो जाओगे; किन्तु आज एक बार बिना तुमसे कहे मैं इस काममें प्रवृत न हो सकँगा, इसीसे आज इतने सबेरे उठकर पहले तुम्हारे ही पास आया हूं। गोरा चुपचाप बैठा रहा, कुछ बोला नहीं। विनय-तो तुम मेरे विवाह-मण्डपमें न आ सकोगे, यही बात स्थिर रही! गोरा हां, मैं न आ सकूँगा। विनय चुप हो रहा । गोराने हृदयकी वेदनाको दबाकर हँसकर कहा-~~मैं नहीं गया, इससे क्या ? तुम्हारी ही तो जीत हुई । तुम माँको खींचकर ले ही गये हो । मैंने चेष्टा बहुत की, किन्तु मैं उनको किसी तरह रोककर नहीं रख सका । वह तुम्हें न छोड़ सकी । आखिर तुमसे मुझे हार माननी पड़ी! विनयने कहा --- भाई, मुझे दोष मत दो। मैंने उनसे जोर देकर कहा "माँ, मेरे न्याहमें तुम कभी जाने न पायोगी ।' मांने कहा-देखो विनय तुम्हारे व्याहमें जो न जायँगे, वे तुम्हारा निमन्त्रण पाकर भी न जायेंगे और जो जानेवाले हैं वे तुम्हारे मना करने पर भी जायेंगे । इसी लिए मैं तुमसे कहती हूं कि, न तुम किसी को निमन्त्रण दो, और न