पृष्ठ:गोरा.pdf/४६७

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गोरा

गोरा [ ४६७ को भी इस तरह वहाँ कब तक बिठा रक्खोगी । उस बेचारे को कुछ काम न घन्धा, दिन भर बैठा-बैठा तम्बाकू पीकर घरकी दीवालें काली किया करता है । भला इस तरह रहना उसे कैसे अच्छा लगेगा ? जिस दिन हरिमोहिनीको चिट्ठी मिली, उसके दूसरे दिन सबेरे ही नौकर को साथ ले, स्वयं विनयके घर गई ! तब नीचेके कमरे में सुचरिता, ललिता और आनन्दमयी रसोई-पानीकी तैयारी कर रही थी। हरिमोहिनीको आनन्दमयी विशेष आदरके साथ पालकीसे उतार लाई । वह उन शिष्टाचारों पर ध्यान न देकर एकाएक बोली- मैं राधा- रानीको लेने आई हूं। आनन्दमयीने कहा-अच्छी बात है, ले जाओ; जरा बैठों मी तो। हरिमोहिनी-~-नहीं मेरा पूजा-पाठ समी पड़ा है। नित्य कृत्य करके नहीं आई हूँ। मैं अभी यहाँ न बैठ सकूँगी। सुचरिता चुपचाप कद्द छील रही थी हरिमोहिनीने उसे पुकार कर कहा-सुनती हो चलो अब वक्त हो गया। ललिता और आनन्दमयी चुपचाप बैठी रही। सुचरिता अपना काम छोड़ उठ खड़ी हुई और बोली -मौसी आओ। हरिमोहिनीको पालकीकी ओर जाते देख सुचरिताने उसका हाथ पकड़कर कहा- चलो एक बार इस कमरेमें चलो। सुचरिताने हरिमोहिनीको घरके भीतर ले जाकर दृढ़ता पूर्वक कहा- जब तुम मुझको लेने आई हो तब सब लोगोंके सामने तुमको खाली हाथ न लौटाऊँगी मैं तुम्हारे साथ चलँगी; किन्तु अाज ही दोपहरको फिर मैं यहाँ लौट आऊँगी। हरिमोहिनीने मुँह फुलाकर कहा तो यह क्यों नहीं कहती कि यहीं रहना चाहती हो। सुचरिता-हमेशा तो न रह सकूँगी। हाँ जब तक मां यहाँ रहेगी मैं भी इसके साथ रहूँगी। उसे छोड़कर न आऊँगी।