पृष्ठ:गोरा.pdf/४७

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गोरा [ ४७ परेशने कहा-सुना उस दिन सतीश आपके यहाँ आया था। जान पड़ता है आपको बहुत परेशन कर गया है ? यह इतना बकता है कि इसकी दीदीने इसे बख्तियार खिलर्जीका टाइटिल दे रक्खा है। विनयने कहा-मैं भी खूब बक सकता हूँ इसीसे हम दोनों में खूब हेल मेल हो गया है। क्यो सतीश बाबू ? सतीशने इसका कुछ उत्तर नहीं दिया; किन्तु पीछे कहीं उसके नवीन नामके कारण विनयके निकट उसका गौरव घट न, जाय, इसी लिए वह व्यस्त हो उठा और कहने लगा . खूब तो है, अच्छा तो है-वतियार खिलजी नाम बुरा क्या है ! अच्छा विनय वाबू अक्तियार खिलजीने तो लड़ाई लड़ी थी ? उसने तो बंगालको जीत लिया था ? विनयने हँसकर कहा-पहले वह लड़ाई लड़ा करता था लेकिन अब लड़ाईकी जरूरत नहीं पड़ती, इसलिए इस समय वह सिर्फ लेकचर ही देता है और बंगालको जीत भी लेता है। इसी तरह बहुत देर तक बातचीत होती रही। परेश बाबूने सबसे कम बातें की-~-वह प्रसन्न शान्त सुखसे बीच बीच में केवल हँस देते थे । दो एक वातामें बोले भी, मगर बहुत थोड़ा । विदा होने के समय कुसीसे उठ कर उन्होंने कहा-हमारे घर का नम्वर अठत्तर है यहाँ से बराबर दाहने हाथकी तरफ जाकर- सतीश बीच ही में बोल उठा-- वह हमारा घर जानते हैं । उस दिन मेरे साथ हमारे दरवाजे तक गये थे। इस बात से लज्जित होने का कोई प्रयोजन न था किन्तु विनय मन ही मन लज्जित हो उठा । जैसे उसकी कोई चोरी पकड़ ली गई । बुद्धने कहा- तव तो आप हमारा घर जानते हैं | खैर फिर कभी अगर आपकी...1 विनयः उसके लिए आपको कहना नहीं पड़ेगा कलकत्ता जैसा शहर होने के कारण ही अब तक हमारी आपकी जान पहचान नहीं हुई थी।