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गोरा

- गोरा [ mat तरह दबने वाला न था । गोरा उसे गाली भी देता तो भी वह मनमें कुछ न लाता था बल्कि खुशी होता था ! वह समझता था कि मेरे गुरु (गौरमोहन ) का भाव बहुत ऊंचे दर्जे का है । अविनाश की चेष्टा से गोरा के प्रायश्चित के विषय में चारों ओर खासी धूम मच गई । गोराको देखनेके लिए उसके साथ बातें करने के लिए भुण्ड के मुण्ड लोग उसके घर आने लगे। पहले से भी लोगोंकी भीड़ बढ़ गई । रोज-रोज उसके पास चारों ओरसे इतनी चिट्ठियाँ आने लगीं कि उनका पढ़ना भी बन्द कर दिया गया । गोरा को मालूम होने लगा जैसे इस देशव्यापिनी अलोचनाके द्वारा उसके प्रायश्चितकी सात्विकता नष्ट हो गई हो ! कृष्णदयाल अाजकल समाचार पत्रोंको हाथसे छूते तक न थे। किन्तु यह बात लोगों के मुँहसे उनके कानों में भी जा पहुंची । उनका योग्य पुत्र गोरा बड़े समारोह के साथ प्रायश्चित करने बैठा है, और वह अपने पिता के पद चिन्ह का अनुसरण करके किसी समय उन्हींकी भांति सिद्ध पुरुष हो जायगा, यह सम्वाद और आशा कृष्णदयाल के कृपापात्रों ने उनके आगे बढ़े गौरवके साथ प्रकट की गोरा के कोठेमें कृष्णदयालने बहुत दिनों से पैर न रखा था। आज वे अपना रेशमी वस्त्र उतारकर, सूती कपड़े पहिनकर एकाएक उसके कोठे में गये । वहां उन्होंने गोरा को नहीं देखा । नौकर से पुछने पर मालूम हुअा कि वह ठाकुर जी के घर में हैं। कृष्णदयालने चकित होकर फिर नौकर से पूछा-८ ! ठाकुर जी के कमरेमें उसका क्या काम है ? “वे पूजा करते हैं।" कृष्णदयालने हड़बड़ाकर ठाकुर जी के घर के पास जाकर देखा कि यथार्थ ही गोरा पूजा पर बैठा है। कृष्णदयालने बाहरसे पुकारा-गोरा । गोरा अपने पिता के आगमनसे उठ खड़ा हुआ। 1