पृष्ठ:गोरा.pdf/४७९

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[७३] कुल प्रायश्चित्त की सभा होगी, और आज रातसे ही गोरा उस बाग में जाकर रहेगा, जहाँ प्रायश्चित्त होने वाला है,यही तब हुआ था । जिस समय गोरा वहाँ जानेको तैयार था, उसी समय हरिमोहिनी आकर उप- स्थित हुई । उन्हें देखकर गोराके मनको कुछ प्रसन्नता नहीं हुई । गोराने कहा-आप आई है, लेकिन मुझे तो अभी जाना है । माँ मी कई दिनसे धरमें नहीं हैं । अगर उनसे कुछ प्रयोजन हो, तो.." हरिमोहिनीने कहा-ना भैया, मैं तुम्हारे ही पास आई हूँ। जरा बैठ जानो, तुम्हारा बहुत समय न लूंगी। गोरा बैठ गया। हरिमोहिनीने सुचरिताका जिक्र छेड़ा। कहा-- तुम्हारी दी हुई शिक्षासे उसका बड़ा उपकार हुआ है । यहाँ तक कि आज कल वह हर एक के हाथका पानी भी नहीं पीती, और सभी बातों में उसकी सुमतिका परिचय मिलता है। हरिमोहिनी कहने लगी–मैया, उसके बारे में मुझे क्या कम चिन्ता थी उसे सुमार्ग पर लाकर तुमने जो मेग उपकार किया है, उसका क्खान मैं मुखसे नहीं कर सकती । इसके बाद हरिमोहिनीने फिर कहना शुरू किया कि-सुचरिता की अवस्था अब अधिक हो चुकी है। उसका ब्याह अब बहुत जल्दी हो जाना चाहिये, यहाँ तककि उसमें एक दिन की भी देर होना अव मुना- सिब नहीं है । हिन्दूके घरमें अगर वह होती, ब्राह्म परिवारमें न रहती, तो अब तक बाल-बच्चोंसे उसकी गोद भर गई होती। व्याह में दे करके कितना बड़ा अवैध कार्य हुआ है, इस बार में निश्चय ही तुम भी सहमत होंगे ! मैं बहुत समय तक सुचरिताके विवाहके बारमें असहा उद्वेग सहन करने के बाद अन्तको बहुत कुछ साध्य साधना और अनुनय विनयके उपरान्त अपने देवर कैलाश को राजी करके कल- , । ! YUE