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गोरा

गोरा ४८ ] विनय सड़क तक परेशबाबू को पहुंचा पाया । दरवाजे के पास वह कुछ देर तक खड़ा रहा । परेशवाबू छड़ी टेकते हुये धीरे धीरे चले और सतीश लगातार बातें करता हुआ उनके साथ साथ चला । विनय अपने मनमें कहने लगा-परेश बाबूके समान ऐसा वृद्ध मैंने कोई नहीं देखा-देखते ही मनमें भक्तिका संचार होता है और पैर छूनेको जी चाहता है ! और सतीश लड़का भी कैसा अच्छा और तेज है। भविष्यमें एक योग्य पुरुष होगा—जैसी बुद्धि है वैसा ही भोलपन है। वह वृद्ध और बालक, दोनों चाहे जितने भले हो, उतनी थोड़ी देरके परिचयसे उनके सम्बन्धमें इतनी भक्ति और लेहका उमड़ पड़ना साधारणत; कभी सम्भव न हो सकता । किन्तु विनयका मन ऐसी हालतमें था कि उसने अधिक परिचयकी अपेक्षा नहीं रक्खी । उसके बाद विनय अपने मनमें सोचने ना- घर जाना ही होगा। न जाना शिष्टाचार और भद्रताके विरुद्ध होगा। किन्तु गोराके मुख द्वारा उसके दल का भारतवर्ष उससे कहने लगा कि वहाँ तुम्हारा आना जाना नहीं हो सकता ! खबरदार ! विनय पग पग पर अपने दलके भारतवर्षका निषेध माना है-अनेक समय मनमें दुषधा आने पर भी माना है ! किन्तु आज उसके ननमें एक • प्रकार का विद्रोह दिखाई दिया। उसे जान पड़ने लगा, भारतवर्ष जैसे केवल निषेधको ही मूर्ति है। नौकरने आकर ख़बर दी, भोजन तैयार है. किन्तु विनयने अभी तक स्नान ही नहीं किया । बारह बज गए थे। अचानक विनयने जोरसे सिर हिला कर कहा- मैं नहीं खाऊँगा तुम लोग जानो। यह कह छाता कन्धे पर रख कर वह घरसे बाहर निकल गया ! सीधा गोराके घर आकर पहुँचा । विनय जानता था कि अम्हट स्ट्रीटमें एक मकान किराए पर लेकर हिन्दू हितैषी कार्यालय स्थापित हुआ है। नित्य दोपहरको गोरा उस कार्यालयमें जाकर बंगाल भरमें उसके दल के लोग वहाँ-जहाँ हैं उन सबकों सजग और तत्पर रखने के लिए अपने