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गोरा

गोरा गोराका मन इस उपलक्षसे एक बार सुचरिताके पास जाने के लिए उसी समय उद्यत हो उठा। उसके हृदयने कहा- चलो आज एक चार आखिरी मुलाकात कर आओ। कल तुम्हारा प्रायश्चित है, उसके उपरान्त तो तुम तपस्वी हो जानोगे। आज केवल यही एक रात्रि मरका समय है; इसीमें केवल कुछ मिनटोंके लिए मिल लो कुछ अपराध न होगा। और अगर होगा भी तो वह कल प्रायश्चितमें भस्म हो जायगा। गोराने दम भर चुप रह कर पूछा--उनको क्या समझाना होगा, बतलाइए। हरिमोहिनीने कहा-और कुछ नहीं, केवल यही कि हिन्दू आदर्श के अनुसार सुचरिता जैसे सयानी लड़की को शीघ्र ब्याह कर लेना चाहिए, यही उसका कर्तव्य है और हिन्दू-समाजमें कैलाश जैसे सत्पात्रका लाम सुचरिताको अवस्थाकी लड़कीके लिए अचिन्तनीय सौभाग्य है। गोराके हृदयमें जैसे कोई भाले भोंकने लगा। जिस आदीको उस दिन सुचरिताके घरमें द्वार पर देखा . था उसे स्मरण करके गोराके जैसे हजारों बिच्छू डंक मारने लगे! सुचरिताको वह पावेगा ऐसी कल्पना करना भी गोराके लिए असत्य है । उसका मन बज्र-नादसे कहने लगा, ना यह कभी नहीं हो सकता। और किसीके साथ सुचरिताका मिलन होना असम्भव है; बुद्धि-प्रेमी और भावकी गम्भीरतासे परिपूर्ण सुचरिता का गम्भीर निस्तब्ध हृदय पृथ्वी पर गोराके सिवा दूसरे किसी आदमी के सामने इस तरह स्पष्ट रूपसे प्रकाशित नहीं हुआ था, और अन्य किसीके आगे किसी दिन उस तरह प्रकाशित भी नहीं हो सकता । वह हृदय कैसा अद्भुत है। कैसा सुन्दर है ? रहस्य निकेतनकी अन्तरतम ड्योढ़ीमें वह कौन अनिर्वचनीय सत्ता देखी गई है ! मनुष्य को इस तरह कितनी दफे देखा जाता है और कितने आदमियों को देखा जाता है ? दैवसंयोगसे ही जिस आदमीने सुचरिताको ऐसे गहरे सत्य रूप में देख पाया है, अपनी सम्पूर्ण प्रकृति के द्वारा फा.नं. ३१