पृष्ठ:गोरा.pdf/४८३

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" [७४] गोरा जैसे ही.हरिमोहिमोनीके सामने आया वैसे ही वह कह उठो- भैया, तुम एकबार मेरे साथ चलो ! तुम्हारे जाने से ही, तुम्हारे एक बार अपने मुखसे कुछ कह देनेसे ही, सब काम बन जायगा । गोराने कहा-मैं क्यों जाऊँ ! सुचरिताके साथ मेरा क्या सम्बन्ध है ? कुछ भी नहीं। हरिमो०-वह तुम्हें देवता के समान मानती है, भक्ति करती है तुम्हें अपना गुरू मानती है ? मे - पिण्डमें एक तरफसे दूसरी तरफ तक जैसे दिल्लीकी श्रागसे गर्म की हुई सुई किसीने भोक दी। गोराने कहा-मुझे वहाँ अपने जानेका कुछ प्रयोजन नहीं देख पड़ता । सुचरिताके साथ मेरी भेट होने की कोई संभावना नहीं है। हरिमोहिनीने खुश होकर कहा-सो तो है ही ! इतनी बड़ी स्यानी लड़की से तुम्हारा मिलना-जुलना तो बेशक अच्छा नहीं है। लेकिन भैया, आज मेरा इतना काम किये बिना तो मैं तुमको छोईंगी नहीं। उसके बाद अगर फिर कभी तुमको बुलाऊँ, तो कहना। गोराने बार-बार सिर हिलाकर इस अाहवाहको अस्वीकार कर दिया। अब नहीं, किसी तरह नहीं । सव खतम हो गया। उसने अपने विधाताको सब अर्पण कर दिया है। अपनी पवित्रता में अब वह किसी तरहका दाग नहीं लगा सकेगा। अब वह सुचरिता से मिलने नहीं जायगा। हरिमोहिनीने जब गोराके भावसे यह निश्चय समझ लिया कि उसे डिगाना असंभव है, तब उसने कहा-अगर नहीं ही जा सकते, तो एक काम करो भैया ? एक चिट्ठी उसे लिख दो ? ४५३ ! ,