पृष्ठ:गोरा.pdf/४९६

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। [७६ ] सुचरिता जिस समय आँखोंके आँसू छिपानेके लिये संदूकके ऊपर एकदम मुक कर कपड़े रखने में लगी हुई थी, उसी समय खबर आई कि गोरा बाबू आये हैं। सुचरिता फौरन आँसू पोंछ कर हाथका काम छोड़कर उठ खड़ी हुई वैसे ही गोराने भी वहाँ प्रवेश किया। गोराके ललाट में उस समय भी तिलक लगा हुआ था इसका उसे होश ही नहीं था। शरीर पर भी वही पिताम्बर और चादर थी । ऐसे वेशसे साधारणतः कोई किसीके घर मुलाकात करने नहीं जाता । वही बहले पहल जब गोरासे भेंटहुई थी, उस दिनका ख्याल सुचरिताको हो श्राया । सुचरतिा जानती थी कि उस दिन गोरा विशेष कर युद्ध के वेशसे आया था। तो फिर क्या आज भी यह युद्धका साज है ? गोरा आते ही एकदमाजमीन में सिर रखकर परेशबाबूको प्रणाम किया और उनके चरणों की रज मस्तक में लगाई परेशबाबू ने व्यस्त होकर उसे उठाया और कहा-श्राओ, पात्रो भैया बैठो। गोरा कह उठा-परेस बाबू मुझे अब कोई बन्धन नहीं है ! परेशने विस्मित होकर पूछा- काहेका बन्धन ? गोरा--मैं हिन्दू नहीं हूँ ? परेश-हिन्दू नहीं हो ? मोरा-~ना, मैं हिन्दु नहीं हूं, आज खबर मिली है कि मैं गदर के समयका पाया हुआ लड़का हूँ मेरे पिता आयरिश मैन थे। भारतवर्ष के उत्तर से दक्षिण तक सब देव मन्दिरों का द्वार आज मेरे लिए बन्द हो गया है। आज सारे देश भर में किसी पंक्ति में किसी भी जगह मेरे मोजनके लिये श्रासन नहीं है। परेश और सुचरिता, सन्नाटेमें आकर बैठे रहे। परेशको न सूझा कि वह गोरासे क्या कहें ४६६