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गोरा

गोरा [ YEE अब चण्डाल के घर में भी मुझे अपवित्र होने का भय नहीं रहा ! परेशबाबू अाज प्रातः काल सम्पूर्ण अनावृत चितको लेकर मैं भारतवर्षकी गोदमें मिष्ठ हुया हूँ-~-माताकी गोद किसे कहते हैं, इसकी सम्पूर्ण उपलब्धि तने दिनके बाद मैं कर सका हूँ। परेशने कहा-~~गोरा, अपनी माताकी गोद में तुमने जो अधिकार पाया उसी अधिकारके भीतर तुम हम लोगोंको भी बुला कर ले चलो ! गोराने कहा-आप जानते हैं आज मुक्ति पाकर पहले ही आपके म क्वों पाया हूँ। परेश क्यों ? गोरा--अापके पास ही. इस मुक्तिका मन्त्र है, इसीलिए अाज अाफ्ने सी समाजके भीतर स्थान नहीं राया । मुझे अपना शिष्य कर लीजिये। आप अाज मुझे उन्ती देवताका मन्त्र दीजिए, जो हिन्दू, मुसलमान, ईसाई झ आदि सभीके मन्दिरका द्वार किसी जाति के लिए, किसी व्यक्तिके जए कभी बन्द नहीं होने देता-जो केवल हिन्दुओंके ही देवता नहीं हैं, भारतवर्ष भरके देवता हैं ! परेश बाबूके मुख मडल पर भक्ति के गहरे माधुर्यसे स्निग्ध झलक हि गई-वह आँखें नीची करके चुपचाप खड़े रहे। इतनी देर के बाद गोराने नुचरिताकी अोर फिर कर देखा । सुचरिता नी कुर्सी पर स्तब्ध होकर बैठी हुई थी। गोराने हस कर कहा-सुचरिता अब मैं तुम्हारा गुरु नहीं हूँ मैं यह इकर तुम्हारे पागे प्रार्थना करता हूँ कि तुम मेरा हाथ पकड़कर मुझे अपने गुरुदेवके पास ले चलो। यह कहकर गोरा सुचरिताकी और अपना दाहिना हाथ बढ़ाकर सर हुा । सुचरिताने कुर्सी परसे उटकर गोराके हाथमें अपना हाथ है आ ! तब गोराने सुचरिताके साथ परेश बाबूको प्रणाम किया।