पृष्ठ:गोरा.pdf/५००

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परिशिष्ठ

परिशिष्ठ गोराने सन्ध्याके उपरान्त घरमें लौट कर देखा, आनन्दमयी अपनो दालानके सामने बदामदे में चुपकी बैठी हुई हैं। गोराने आते ही उनके दोनों पैर पकड़ कर उन पर अपना सिर रख दिया। आनन्दमयी ने दोनों हाथोंसे उसका सिर उठा कर चूम लिया । . गोराने कहा--माँ, तुम्ही मेरी माता हो ? जिस माताको मैं ढूंढता फिर रहा था, वही मेरे घरमें श्राकर बैठी हुई थी। तुममें जाति नहीं है, विचार नहीं है, घृणा नहीं है ---तुम केवल कल्याणकी प्रतिमा हो। तुम्हीं मेरी मारतमाता हो ।-माँ, अब जरा अपनी लामिनियाको बुलानो, उससे कह दो, मेरे लिए जल ला दे। तब अानन्दमयीने गोराके कानके पास मुँह ले जा कर अश्रु गद्गद् कोमल स्वरमें कहा—गोरा, अब जरा विनय को बुला भेजू !