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गोरा

गोरा [ ५१. परेश बाबूके साथ खुलकर उसकी बात चीत होने लगी। वाते करते करते एक एक करके परेश बाबूको अाज विनय का सब हाल मालूम हो गया । विनय के मां बाप कोई नहीं है; चाचीके साथ चाचा गाँवमें रह कर जमीन जायदाद देखते हैं। दो चचेरे भाई उसके साथ एक ही घरमें रह कर कलकत्तेमें पढ़ते थे। उनमेंसे बड़ा भाई बकालत पास करके उस जिलेके अदालतमें वकालत करता है, और छोटा भाई कलकत्ते में ही हैकी बीमारीसे मर गया । चाचाकी इच्छा है कि विनय डिपुटी कले- क्टरी के लिए कोशिश करे, लेकिन कोई भी कोशिश न करके अनेक व्यर्थ के कामों में लगा हुआ है। इस तरह लगभग एक घंटा बीत गया। विना कामके और अधिक देर तक ठहरना ठीक न समझकर विनय उठ खड़ा हुआ। उसने कहा-बन्धु सतीशके साथ मेरी भेंट नहीं हुई, इसका दुःख है ; उससे कह दीजिएगा कि मैं आया था। परेश बाबूने कहा-और जरा देर टहरत तो उन लोगोंसे भेंट हो जाती। उनके लौटने में अब अधिक देर नहीं है । इसी बात पर निर्भर करके फिर बैठ जाने में विनयको लज्जा मालूम हुई । और जरा आग्रह करनेसे वह बैठ सकता था--किन्तु परेश बाबू अधिक बोलने या आग्रह करनेवाले आदी ही नहीं थे, इससे चल ही देना पड़ा। परेशबाबूने कहा - श्राप फिर आयें तो मुझे बड़ो प्रसन्नता होगी। सड़क पर आकर विनयने अपने घरकी तरफ लौटने की कोई जरूरत नहीं देखी । वहाँ कोई काम न था । विनय अखबारों में लिखा करता है। उसके अंग्रेजी लेख की लोग खूब तारीफ करते हैं। किन्तु पिछले कई दिनोंसे जब वह लिखने बैठता था तो कुछ सूझता ही नहीं था। टेबिलके सामने अधिक समय तक बैठना ही मुश्किल होता था-मन उचाट और व्याकुल सा हो जाता, इसीसे आज वह अकारण ही उलटी तरफ चला । दो-चार कदम जाते ही एक बालक-ठकी ध्वनि सुन पड़ी- "विनय बाबू ! ओ विनय बाबू !"