पृष्ठ:गोरा.pdf/५२

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५२ ]
गोरा

५२ ] गोरा सिर उठा कर देखा एक गाड़ीकी खिड़की पर भुका हुआ सतीश उसे . पुकार रहा है। गाड़ीके भीतर गद्दी पर थोड़ी सी साड़ी और थोड़ी सी सफेद कुर्तेकी आस्तीनको देखकर उसे यह समझने में कुछ भी सन्देह नहीं रहा कि उसमें कौन बैठा है। बंगाली भद्रताके अनुसार गाड़ीकी तरफ देखना विनयके लिए कठिन हो उठा। इसी बीचमें वहीं गाड़ीसे उतर कर सतीशने उसका हाथ पकड़ लिया और कहा-चलिए हमारे धर । विनयने कहा—मैं तो तुम्हारे ही घरसे अभी पा रहा हूँ। सतीशने कहा वाह, हम लोग तो थे ही नहीं, फिर चलिए । सतीशकी जिद्दको विनय याल नहीं सका। विनयको लेकर घरमें प्रवेश करते ही सतीशने उच्च स्वरसे कहा—बाबा, विनय बाबूको लाया हूँ। वृद्धने घरसे निकल कर जरा हँस कर कहा--बड़े कड़ेके हाथ श्राप पड़ गये हैं । आप, जल्दी छुटकारा नपाइएगा। सतीश अपनी दीदीको बुला दे। विनय घरमें आकर बैठ गया, उसका हृदय वेगसे धड़कने लगा। परेश बाबूने कहा—जान पड़ता है, आप थक गये। सतीश बड़ा ऊधमी लड़का है। घरमें सतीशने जब अपनी दीदीको लेकर प्रवेश किया, तब विनयने पहले एक हलकी सुगन्धका अनुभव किया उसके बाद सुना, परेश बाबू कहते हैं-राधे, विनय बाबू आये हैं इनको तो तुम जानती ही हो। विनय चकित हो सिर उठा कर देखा, सुचरिता उसे नमस्कार करके सामनेकी कुर्सी पर बैठ गई । अबकी विनय उसके प्रति नमस्कार करना नहीं भूला। सुचरिताने बृद्धसे कहा- वह रास्ते में जा रहे थे । सतीश उन्हें देखते ही फिर रोके नहीं रुका | वह गाड़ीसे उतरकर उन्हें पकड़कर खींच लाया ।